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फूलों की गन्ध और पराग से ओस-भीनी हवा गर्भिल और ऊष्म हो गई है । और आसपास के ग्राम जनों, कम्मकरों का भारी मेला चारों ओर मचा है। रंग-बिरंगी सज्जाओं में युवा-युवतियों के यूथ राह में धमकते - गमकते, नाना वादित्रों के साथ गान-नृत्य करते दिखाई पड़े। और सहस्रों कण्ठों से जाने कितनी जयकारें गूंज रही हैं ।
"हमारे रथ विशाला के विशाल नगर - तोरण पर आ पहुँचे । सुवर्ण की नक्काशी वाले इस तुंग मर्मर तोरण के शीर्ष पर शिखर- मंडित देवालय में अरिहंत की चतुर्मुखी भव्य प्रतिमा विराजमान है । अगल-बगल के पच्चीकारी वाले प्रकाण्ड वातायनों में नक्काड़े और जय भेरियाँ बज रही हैं । उनके रेलिंगों पर से पंक्तिबद्ध बालाओं की चम्पक - गौर बाँहें फूलों की राशियाँ बरसा रही हैं । are शिल्प से मंडित तोरण के द्वार पक्षों के विशाल आलयों में अखण्ड जोत महादीप जल रहे हैं । सुवर्ण खचित हाथी दाँत से मढ़े नगर कपाटों की पच्चीकारी इन्द्र की ईशानपुरी के प्रवेश द्वार का स्मरण कराती है । सिंहपौर के दोनों ओर सुवर्णझूलों से अलंकृत धवल हस्तियों की पंक्तियाँ शुण्ड उठा कर प्रणाम कर रही हैं। विशाला के पुराचीन इक्ष्वाकु शंखों की ध्वनियाँ दिगन्तों को हिला रही हैं ।
एक परम लावण्यवती केशरवर्णी कुमारिका ने द्वार के बीच खड़े हो कर सहस्रदीप आरती उतारी। महानायक सिंहभद्र भव्य लिच्छवि राजवेश में अनेक कुल - पुत्रों के साथ हमारे स्वागत को सामने प्रस्तुत हैं । उनके अभिवादन के साथ ही सहस्रों कण्ठों का एक महारव गूंज उठा :
ज्ञातृपुत्र वर्द्धमान कुमार जयवन्त हों
लिच्छविकुल- सूर्य वर्द्धमान महावीर जयवन्त हों
कुण्डपुराधीश्वर महाराज सिद्धार्थ जयवन्त हों'
वैशाली गणतंत्र अमर हो : वज्जियों का गुणसंघ जयवन्त हो
द्वार में प्रवेश करते ही लक्ष लक्ष कण्ठों से अनवरत जयध्वनि होने लगी 'इक्ष्वाकु - नन्दन महावीर जयवन्त हो ! - वैशाली का गण - केसरी महावीर जयवन्त हो !' राज मार्ग से लगा कर, परकोटों के कँगूरे, और दोनों ओर के भव्य भवनों के चबूतरे, अलिन्द, वातायन, गवाक्ष, छत, छज्जे, पारावार नरनारियों की रंगछटा से चित्रित से लग रहे हैं । फूल, गुलाल, अबीर, मणि-चूर्णों की चहुँ ओर से वृष्टि हो रही है । आगे-आगे विपुल वैभव के इन्द्रजाल सी शोभा यात्रा अनेक वादियों, पताकाओं, रथ-श्रेणियों, सुसज्जित अश्वों, हाथियों के साथ चल रही है । महार्ध वेश-भूषा से शोभित कुलांगनाएँ और बालाएँ वातायनों पर से
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