________________
२७३
क्योंकि उन्हें अपने अहं से छुट्टी नहीं है । और मैं कोई निगूढ़ अध्यात्म नहीं बोलता, निरा हृदय बोलता हूँ, शुद्ध जीवन बोलता हूँ। प्यार को परिभाषाएँ देकर हम उसे जटिल और कुंठित करते हैं । अध्यात्म के प्रवचन कर हम आत्मा को उसके बहने प्यार से वंचित कर देते हैं ।'
'तुम कुछ दिन यहाँ रहो वर्द्धन्, हमें तुम्हारी ज़रूरत है ।'
'वह ज़रूरत, मामा, मेरे दूर चले जाने से ही अचूक पूरी होगी । यहाँ रहूँगा तो तुम्हारे नौ सौ निन्यानवे गण - राजा सदा मेरे और जनगण के बीच दीवार बन कर खड़े रहेंगे ।'
तो विस्फोट होगा, मान, और युद्ध टल नहीं सकेगा ।'
'विस्फोट अनिवार्य है, मामा, ताकि नया विधान निर्विकल्प आ सके । और कहा न मैंने, कि मैं युद्ध को टालने नहीं आया, उसे अन्त तक लड़ कर समाप्त कर देने आया हूँ !'
...
'तो गंगा-शोण के सीमान्त को सम्हाल कर, हमें निश्चिन्त करो, आयुप्यमान् ! '
'मेरा सीमान्त मेरे भीतर है, महासेनापति । तुम्हारे सैन्य शिविर मेरा मोर्चा नहीं हो सकते। और मैं बचाव की लड़ाई नहीं लड़ता । मैं आक्रामक का इन्तज़ार नहीं करूँगा। मैं स्वयं सीधे मगधेश्वर बिंबिसार पर आक्रमण कर दूंगा । कहूँगा कि सम्राट्, हमारे बीच सेनाएँ नहीं हो सकतीं। शूरमा सीधे लड़ कर, स्वयं ही निपटारा कर लें । शस्त्र तक क्यों हो हमारे बीच में, केवल ललाट का सूर्य लड़े । और जानता हूँ, मागध मेरी चुनौती को मुकर नहीं सकेगा ।'
उल्लास में झूम कर बीच ही में बोल पड़ीं रोहिणी मामी .
'मेरे दोहित्रलाल, तुम्हारे उस सूरज-युद्ध की साक्षी होना चाहती है, तुम्हारी रोहिणी मामी । क्या उसे साथ ले चल सकोगे ? '
'अपने धनुष-बाण ले कर चलोगी, मामी ? '
'वह तो तुमने छीन लिये, देवता । केवल आँचल ही तो अब बचा है मेरे पास । मेरे इस अन्तिम अस्त्र से मुझे वंचित न करना और हो सके तो मुझे साथ रखना !
'आर्यावर्त की रणचण्डी रोहिणी का ठीक समय पर आवाहन करूँगा ! '
कि तभी चेटकराज का सन्देशा लेकर एक चर आया । सान्ध्य-भोजन पर उनके महालय में आमंत्रित हूँ । स्वजन - परिवार मुझ से मिलने को उत्सुक हैं ।
मैंने अनुचर से पूछा :
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org