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काम-साम्राज्य की एक कड़ी बना हुआ है। मेरे गर्भावतरण के समय जो आकाश से रत्नों की राशियाँ बरसी थीं, वे केवल सम्पन्नों, कुलीनों, राजन्यों, श्रेष्ठियों के लिए नहीं थीं। वैशाली के जन-जन के घर उन रत्नों से भर गये थे। पर वे दीन जन उन रत्नों का मूल्य क्या जानें। वे कम्मकर और शूद्र, जिन्हें शिक्षा पाने
और उपानह पहनने तक का अधिकार नहीं ! ब्राह्मण, वणिक और क्षत्रियों ने अपने वाणिज्य-कौशल से उन तमाम विपन्न जनों के संचित रत्नों को कौड़ियों के मोल ख़रीद कर अपने भण्डार भर लिये। और परम्परागत दीन-दरिद्र, फिर केवल अन्न-वस्त्र जीवी, दलित अपमानित जीवन बिताने को छूट गये। आकाश से सर्व के लिए बरसे वे दिव्य रत्न विश्वंभरा महासत्ता का अपनी तमाम सन्तानों को दिया गया वरदान था। इस कामना-राज्य के वाणिज्य तंत्र ने उस दैवी सम्पदा तक से दीनों को वंचित कर, उसे अपनी आसुरी सम्पदा के कोशागार में बन्दी बना लिया। जीवन्त प्राणदायी सम्पदा को, इन्होंने जड़, मृत लोभ के शिकंजों में कस लिया। केवल मनुज की ही नहीं, कण-कण की, स्वयम् वस्तुधर्म की हत्यारी है यह वणिक-व्यवस्था। इसने तत्व को अपने लोभ के कारागार में कैद किया है।
नहीं. “नहीं. 'अब एक क्षण भी इस वेश्या-राज्य और वैश्य-राज्य में मेरा ठहरना सम्भव नहीं। इससे मुझे निष्क्रान्त हो जाना पड़ेगा। मुहूर्त क्षण आ पहुंचा है। मुझे इस ऐश्वर्य-मण्डित राजमहल से निकल कर चले जाना होगा।
• • ताकि कण-कण के हृदय में विचरूँ। ताकि पाप, तृष्णा और अनाचारों की तहों में उतरूँ। उन्हें अपनी विप्लवी ठोकरों से चूरचूर कर दूं। और यों उनकी सतहों पर चल रहे उलंग दुराचारों के तख्तों, बाजियों और सिंहासनों को उलट दू।
इस काम-साम्राज्य को, प्रेम-साम्राज्य में परिणत कर देने के लिए, मुझे तत्काल इससे निर्वासित हो जाना पड़ेगा। इतिहास को अपनी मनचाही गति में मोड़ देने के लिए मुझे उसकी परिधि के बाहर खड़े हो जाना होगा। इस चक्रावर्तन को अन्ध पुनरावर्तन से मुक्त कर, प्रगतिमान कर देने को, मुझे इसके केन्द्र पर अधिकार करना होगा।
• 'सुनो माँ वैशाली, पतन, पाप, पीड़न और पारस्परिक शोषण के गर्त में पड़े आज के विश्व में, तुम्हीं मनुष्य की एक मात्र आशा हो। क्योंकि तुम्हारे संथागार में राज्यासन नहीं, जिनेश्वर का देवासन बिछा है। पर तुम भी जानेअनजाने इस काम-साम्राज्य की शृंखला की कड़ी होने से बच नहीं सकी हो। सो माँ की मुक्ति के लिए, मुझे उसकी मोहाविष्ट गोद को छोड़ जाना होगा।
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