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में अपना रक्त ढाल दिया है। जान पड़ता है, वैशाली को विश्व-सत्ता बनाने के लिए आपने जम्बूद्वीप के छोरों तक अपनी नाकेबन्दी कर ली है। फिर वैशाली की सुरक्षा में क्या कमी रह गई ?'
मेरे पूज्य मातामह का आसन डोलता दिखाई पड़ा । उनकी बुनियादें थरथरा रही थीं। सकपकाये-से बोले :
'मेरी ये बेचारी बेटियाँ ? आखिर तो अबलाएँ हैं ?'
'कोशकारों ने नारी को अबला जाने क्या सोच कर कहा । पर पुराण और इतिहास में इन बलाओं का प्रताप क्या आपने नहीं देखा ? इनके एक कटाक्ष की मोहिनी पर क्या आपने साम्राज्यों को भस्मीभूत होते नहीं देखा, पुरुषोत्तमों को हार जाते नहीं देखा? हम पुरुषों ने अपने दुर्दम्य बल से इन महाबलाओं की मृदुता को दबोच कर, इन्हें अबला बनाये रखने का महापाप किया है। इनकी निसर्गदत्त मातृ-ममता, और प्रिया-सुलभ समर्पणशीलता का हमने शोषण किया है। वर्ना मेरी मौसी महारानियाँ, अपने प्रेम की सत्ता से पृथ्वी का भाग्य बदल सकती थीं।' ___'जो वस्तु-स्थिति है, वह तो तुम देख ही रहे हो, बेटा । बिम्बिसार से भी अधिक हमारा भागिनेय अजातशत्रु, वैशाली पर अपने दाँत गड़ाये है।'
'देख रहा हूँ तात, हमारा ही रक्त हमारे विरुद्ध उठा है। यह कामसाम्राज्य है, महाराज, इसमें कोई किसी का सगा नहीं । कामिनी और कांचन की ठण्डी शिलाओं से चुने इन दुर्गों की बुनियादें, तृष्णा की बालू पर पड़ी हुई हैं, गणनाथ । तृष्णा के इस महा भयावह जंगल में कौन सुरक्षित है ? यहाँ कौन किसी को पहचानता है ? जहाँ हम अपने ही को नहीं पहचानते, अपने ही शत्रु बने हुए हैं, वहाँ दूसरे के साथ मैत्री और प्रेम का क्या आधार हो सकता है ? हम सब यहाँ एक-दूसरे को अजनबी और पराये हैं। अपनापा और सम्बन्ध मात्र यहाँ स्वार्थ का है। आप जैसे ज्ञानी भी अहं-स्वार्थों के इस दुश्चत्र की कड़ी बन गये? मृगमरीचिकाओं में कल्याण-राज्य खोज रहे हैं ?'
'सारा जगत आज वैशाली को कल्याण-राज्य कहता है। वह क्या झूठ है, आयुष्यमान् ?'
'सच्चा कल्याण-राज्य तो प्रेम का सर्वराज्य होता है । वह किसी भी बाहरी राज-सत्ता से आतंकित और भयभीत कैसे हो सकता है ?'
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