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'तो तुम आदि वैदिक ऋषियों से लगाकर, इन वर्तमान के संजय वेलट्ठिपुत्र आदि तथाकथित तीर्थंकों तक कोई विकास की एक अटूट धारा देखते हो ?'
'निश्चय ही । वेद ही क्यों, जाने किस अनादिकाल से ज्ञान की एक अविच्छिन धारा चली आ रही है । और युगयुगान्तर में, देश - कालानुरूप विश्व और मानव कति नूतन रचनाएँ हुई हैं । और जैसे इस ज्ञेय विश्व और इसके ज्ञान की एक सुशृंखलित धारा है, वैसे ही इसके विभिन्न युगीन परम ज्ञानियों की भी एक अटूट धारा है। ज्योतिर्धरों की एक जुड़ी हुई जाज्वल्यमान परम्परा है । वाद, प्रतिवाद और फिर सम्वाद के अनैकान्तिक चक्रावर्तन में होकर, विकास - प्रगति की यह परम्परा अनन्त में गतिमान है। जोत से जोत जलती जा रही है, सोमेश्वर !
'तो तुम नहीं मानते कि वैदिक और जैन, ब्राह्मण और श्रमण की धाराएँ सर्वथा अलग, विशिष्ट और समानान्तर हैं ? '
'भेद मात्र अन्तर या अवान्तर धाराएं हैं । महाधारा केवल एक है । जैस महासत्ता केवल एक है । उसी के अनैकान्तिक रूप हैं, ये विभिन्न मत, सम्प्रदाय, धर्म, दर्शन । और कौन धारा पहले से है या पीछे से आई, यह भी एक मण्डल आगा-पीछा देखने जैसा ही भ्रामक है । ज्ञाता, , ज्ञेय और ज्ञान का एक अन्तहीन चक्राकार परिणमन है, जो अनन्त आयामी है । उसमें पूर्वापर, आगे-पीछे और ऊपर-नीचे आँकना भी एक अपूर्ण दर्शन का अज्ञान ही कहा जा सकता है ।'
'तुम तो ऐसे समीचीन और समग्र बोल रहे हो, काश्यप, कि अनपूछे भी अनेक प्रश्न उसमें उत्तरित हो जाते हैं । ऋग्वेद के आदि द्रष्टा अघमर्षण से आज तक के स्वतन्त्र विचारकों के बीच का तारतम्य, मेरे हित, खोलने का कष्ट करोगे, भाई ! '
'तुम्हारी कविता में उसकी भावात्मक सामासिकता है तो । वही अभीष्ट है, और पर्याप्त भी ।'
'लेकिन यह जो चक्रावर्ती विकास की बात कही न तुमने । उस श्रृंखला की कड़ियाँ यदि स्पष्ट करो तो ।'
'देखो सोम, आदि और अन्त, न बुद्धि से बनता है, न बोध में वह ग्राह्य है । अनादि और अनन्त स्वीकारने में ही समाधान है । ऋग्वेद के ऋषियों की ठीक पिछली जातीय स्मृति जलाप्लावन की है । सो अपनी प्रत्यभिज्ञा में वे लौटकर, आदि में जल ही देख पाते हैं । ऋग्वेद काल की चेतना सामुदायिक है, और बहिर्मुख भी, सो उसकी वाणी भी वैयक्तिक नहीं, सामूहिक है । अघमर्षण, प्रजापति परमेष्ठिन्, ब्रह्मनस्पति, हिरण्यगर्भ, विश्वकर्मा - ये व्यक्ति नहीं, प्रतीक पुरुष हैं । कई अज्ञात नाम ऋषियों ने मिलकर उद्गीथ रचे, और इन प्रतीक पुरुषों के मुंह
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