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ने एक साथ, लिच्छवि कुल का मानभंजन और सम्मान किया । महारानी-मौसी बेलना के पद-नख पर वैशाली और मगध की सन्धि ठहरी हुई है । पर मगधेश्वर में सौन्दर्य - लिप्सा और साम्राज्य - लिप्सा की जो बराबरी की टक्कर है, उससे मेरी भोली मौसी अनभिज्ञ हैं ।
सामने फैले नक्शे की तरह जो यह घटना चक्र देख रहा हूँ, यह मेरी किसी तीसरी ही आँख का खेल है । बचपन से ही पाया है कि जब भी देश-काल में कुछ जानने की जिज्ञासा बहुत तीव्र हुई, तो मैं अवधि बाँध कर सहज ही उसका ज्ञान कर लेता हूँ । आज वह अवधि- ज्ञान का अर्न्तचक्षु अपलक खुला रह गया है, और मैं सहस्राब्दियों से इस क्षण तक के देश, काल, घटना और व्यक्तियों के अन्तस्तलों झाँक रहा हूँ ।
और उससे स्पष्ट देख रहा हूँ, कि मगधराज श्रेणिक का रक्त एक बार मासमुद्र आर्यावर्त पर अपनी साम्राज्य-पताका फहरायेगा । पर आज का लिप्साग्रस्त और मोहग्रस्त यह राजा, कहीं भीतर मृदु, अकपट, उदार और क्षमाशील है । इसके मार्दव और आर्जव से मैं आकृष्ट हूँ । अपनी मोह-रात्रि के छोर पर, उसे आत्मबात करता देख रहा हूँ । 'लेकिन मृत्यु में भी प्रतिक्रमणशील रहेगी उसकी चेतना ।
'मागध, वर्द्धमान को तुम्हारी ज़रूरत है ।
'देख रहा हूँ, मल्लों की कुशीनारा के उस पार काशी और कोसल का महाराज्य । तक्षशिला का स्नातक प्रसेनजित कोशल के सिंहासन पर बैठा है । उसकी राजधानी श्रावस्ती में सारे जम्बूद्वीप के राज-पथों, नदी-पथों और समुद्रपथों को जोड़ने वाला, धारा - संगम है । इसी से भरतखण्ड और उससे परे के समुद्रमार्गों से जुड़े ज्ञात-अज्ञात अनेक देशों और द्वीपों के सार्थ श्रावस्ती के पण्यों में उतरते हैं। इस तरह वर्तमान के तमाम गम्य विश्व की वस्तु-संपदा से श्रावस्ती के पण्य, श्रेष्ठि- महल और राजमहल भरे पड़े हैं । इसी के राज्य में रहता है वह महागृहपति श्रेष्ठ अनाथ - पिण्डक, जो अपनी सुवर्णराशि से कई राज्यों को ख़रीद सकता है । ऐसे विपुल वैभव संपन्न राज्य का स्वामी यह प्रसेनजित, निकम्मा, कामुक और कापुरुष है । पर फिर भी वर्तमान के तीर्थक और श्रमण उसे पुण्य - पुरुष कहते हैं ।
मल्ल-गण के असाधारण योद्धा युवा बन्धु मल्ल के बल और शस्त्र - कौशल का मल्लों ने उचित सम्मान न किया, तो वह स्वयम् ही अपने गण राज्य से निर्वासित हो गया । यह बन्धु मल्ल तक्षशिला में प्रसेनजित का मित्र और सहपाठी था । स्वदेश-त्याग के बाद जब वह इधर-उधर भटक रहा था, तभी प्रसेनजित ने उसे सम्मानपूर्वक अपने राज्य में आमंत्रित किया। फिर प्रसेनजित के अनुरोध पर उसने
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