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ओर के अलिन्द में, वास्तु और मूर्ति-शिल्प के नाना उपकरण, औजार और सामग्रियाँ प्रस्तुत हैं । तो दूसरे एक अलिन्द में चित्रशाला है। वहाँ देश-देश की रंगबिरंगी मिट्टियों, रजों, वनस्पतियों, पाषाण-चूर्णो, वालुओं से निर्मित रंगों के बड़े-बड़े स्तवक और तूलियाँ हैं। आधारों पर जहाँ-तहाँ विशाल फलक फैले हैं। तो कहीं नदियों के प्रवाहों और खदानों से प्राप्त चित्र-विचित्र शिलाएँ पड़ी हैं।
कक्ष में और बाहर की दीवारों पर अनेक विख्यात चित्रकारों ने भित्तिचित्र आंके हैं। प्रकृत-सी लगती विविधरंगी पाषाणों की मूर्तियाँ हैं । ___ वाङ्गमय-कक्ष में शीर्षस्थ व्यासपीठ की अगल-बगल, चौकियों पर कटेछंटे भूर्ज-पत्रों और ताड़-पत्रों की थप्पियाँ लगी हैं। लेखन-चौकी पर विविध रंगी स्याहियों के मसिपात्र हैं, जो प्रकृत चित्रमय पत्थरों , रत्नों और शंखसीपियों से बने हैं।
वाङ्गमय-कक्ष से लगे एक उपकक्ष में मंगीतशाला है। उसके वीचोंबीच मसृण गद्दियों और उपधानों से मंडित एक मंडलाकार दोवान है। दीवारों में खचित आलयों, और फर्श पर खड़े आधारों पर, दुर्लभ और महामूल्य अनेक प्रकार के वाद्य-यंत्र सज्जित हैं। व्यासपीठ के एक ओर ऐसी वृहदाकार हाथीदांत की मणि-जटित वीणा है, जिसके दो तम्बों में जम्बूद्वीप और पुष्करवर द्वीप की रचना बारीक रत्न-कणियों मे चित्रित है। उसके दूसरी ओर नागमणियों से निर्मित ऐसी महावीणा एक निरन्तर घूमते आधार पर अवलम्बित है, जिसके दोनों तूम्बों में सूर्य और चन्द्रमा चित्रित हैं, जिनके मण्डलों के चारों ओर दमदम करते तारामण्डल अंकित हैं। सामने रक्खा है एक प्रकाण्ड चन्दन का मृदंग, जो समूचे ब्रह्माण्ड का-सा आभास देता है।
वाङ्गमय-भवन से लगे और भी कई छोटे-बड़े उपकक्ष हैं। किसी में औषधिशाला है, किसी में रासायनिक प्रयोग-शाला। इनमें कहीं दिव्य-वनौषधियाँ वेतसकरण्डकों में सजी हैं। जाने कितने दूर देशान्तरों, समुद्र गर्भो से प्राप्त वनस्पतियाँ और खनिज यहाँ बड़े-बड़े शीशों और धातु तथा कांच के पात्रों में व्यवस्थित हैं। अर्द्धपारदर्शी शिलाओं और बिल्लौरी कुम्भों में लवणोदधि और स्वयंभुरमण समुद्रों तथा कई महानदों के जल संचित हैं। इस प्रकार हर उपलब्ध विद्या और विज्ञान के साधन और शास्त्र विभिन्न उपकक्षों में सुलभ कर दिये गये हैं। ... लक्ष्य यह है कि ज्ञान-जीवी वर्द्धमान का मन, जाने कब किस विद्या में रम जाये और वह तन्मय हो जाये, एकाग्र हो जाये । वह अपने आप में मर्यादित हो सके।
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