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• चारों ओर से पानी उछालती बालाओं के वर्तुल, केन्द्रीय पुरुष पर जैसे एक साथ आक्रमण करते हैं। पर पुरुष जाने कब एकाएक गायब हो जाता है। लड़कियाँ डुबकी लगा कर उस पुरुष की खोज में परस्पर टकराती और होड़ें मचाती हैं। · · सुगान्धाविल पानी में एक ऐसा द्रवित मार्दव तैरता है, कि हर कन्या अपने ही भीतर रमणलीन हो रहती है। हरएक को लगता है, कि केन्द्रीय पुरुष उसकी बाँहों में आ गया है। जाने कब तक वे इसी आत्म-तन्मय भाव से, अपने ही साथ केलिमग्न रहती हैं।
• 'बहुत रात गये, वीणा-वादन विरमते ही वे आपे में लौटती हैं, तो पाती हैं कि कुमार वर्द्धमान का दिशाओं के छोरों तक भी कहीं पता नहीं है। सारे कक्षों में घूम-घूम कर वे उन्हें खोजती फिरती हैं। फिर हार कर उनके शयन-कक्ष में झाँकती हैं। कुन्द फूलों से आच्छादित विशाल शैया, अनसोयी और अछूती है। पायताने वैनतेयी एक दीपाधार से सटी गर्दन झुकाये चुपचाप पड़ी है।
इस कक्ष के सामने की दीवार में एक और भी अन्तर्कक्ष का नीलमी द्वार खुला है। उसके चौखट में भीतर का अन्तरित सौम्य आलोक झाँक रहा है। उसकी देहरी पार कर, उसमें जोहने का साहस वे बालाएँ नहीं कर पातीं। भीतर कहीं अलक्ष्य में अखण्ड जल रही धूप-शलाका की चन्दन-कपूरी गन्ध-लहरियों को लड़कियां अपनी अंजुलियों में लेकर माथे पर चढ़ा लेती हैं। फिर भूमि पर आँचल पसार कर, अन्तर्कक्ष की देहरी पर छिटकी निस्तब्ध नील-प्रभा को प्रणिपात करती हैं। और एक-एक कर चुपचाप अपने-अपने कक्षों में सोने चली जाती हैं।
माँ, पिता और सभी परिजनों द्वारा योजित इस दुरभिसंधि को अच्छी तरह समझ रहा हूँ। उनके मन, मुझे बाँधना अब आवश्यक हो गया है। मेरी निर्बन्ध यात्राओं को लेकर, तरह-तरह की दन्तकथाएँ-सी नन्द्यावर्त में चल पड़ी हैं। इतना ही नहीं, कुण्डपुर से लगा कर आसपास के सन्निवेशों में गुजरते हुए सारे आर्यावर्त में उन्होंने विचित्र साहस-वृत्तान्तों का रूप ले लिया है। ____ माता-पिता और राजकुल की चिन्ता स्वाभाविक है। ज्योतिषियों ने जिसके जन्म पर घोषित किया था, कि वह आर्यावर्त का एकराट् चक्रवर्ती होगा, उसमें राजा के बेटे का तो कोई लक्षण दीखता नहीं। या तो आवारा भटकता है, या अपने में खोया रहता है।
· · बीच में व्यवस्था की गई थी, कि मुझे शस्त्र-विद्या सिखाई जाये । भारतों की प्राचीनतम और गोपनतम शस्त्रास्त्र-विद्याओं के निष्णात एक गुरु दक्षिणेश्वर, दक्षिण देश से आये थे। उनका मूल किरात रूप ही मुझे इतना भा गया था कि, मैं उनसे दक्षिण विजया के अरण्यों तथा गोपन और वजित प्रदेशों का पता पाने
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