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सार लिच्छवि युवा, सर झुकाये चुप हो रहे । मदिरा की शारियां ओर चषक मुंह ताक रहे थे उनका ।
मैं सहसा ही उठ खड़ा हुआ। सबका अभिवादन कर विदा हो लिया। छोटे अकम्पन मामा गले में हाथ डाल कर बोले : 'वर्द्धमान, कौशाम्बी की कुमारिकाएं आज नृत्य करेंगी ? रंगशाला में नहीं चलोगे ?'
मैंने हँस कर कहा : 'अब तो अपने ही अन्तःपुर की बाला के पास लौटना चाहता हूँ, मामा । फिर किसी दिन आऊंगा
!"
मामा खिलखिलाकर मेरी जाती पीठ हैरते रह गये ।
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