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गण-तंत्र की गणिका नहीं, गणमाता हैं। लिच्छवियों की सौन्दर्य-पिपासा को शान्त करने के लिए माँ ने अपने वक्ष को हवन-कुण्ड बना दिया है। अपने कुल-वधुत्व और मातृत्व की बलि चढ़ाकर, वैशाली की जनपद-कल्याणी ने अपने आँचल में हम सबको शरण दी है।'
'यही तो हमारे गण-तंत्र का गौरव है, आर्य वर्द्धमान । हमारे जनपद की सर्वश्रेष्ठ सुन्दरी, किसी के व्यक्तिगत स्वामित्व की वस्तु नहीं हो सकती। उस पर हम सबका समान अधिकार है। हमने सप्तभूमिक प्रासाद में आम्रपाली को, वैशाली के हृदय-सिंहासन की महारानी बना कर बैठा दिया है।'
_'. · ·इसलिए कि जिसके पास सहस्र सुवर्ण मुद्रा हो, वही उसका क्रय कर ले! और उसे अनचाहे भी बिक जाना पड़े। क्योंकि वह गणतंत्र की सम्पत्ति है। क्षमा करना देवानुप्रिय, हमने अम्बा को हृदय-सिंहासन पर नहीं बैठाया, हमने माँ को कोठे पर बैठाया है। यह हमारे गणतंत्र का गौरव नहीं, लज्जा है। और सौन्दर्य-पूजा में स्वामित्व का प्रश्न कहाँ से आ गया? उसकी रूपश्री पर अधिकार करने के लिए, हमारे बीच प्राणों की बाज़ियाँ लग गई। खुनी प्रतिस्पर्धाएँ जागीं। द्वंद्व-युद्ध लड़े गये। हमारी निर्बन्ध वासना की आग में वैशाली के भस्म हो जाने तक की घड़ी आ पहुँची। क्या यही हमारी सौन्दर्य-पूजा है ? • • “हमारी रूपतृष्णा जब किसी भी तरह काबू में न आ सकी, तो अम्बा ने अपने हृदय को मसोस कर, आँखों में आँसू भर कर, वैशाली के गण-देवता को सत्यानाश की ज्वालाओं से बचाने के लिए, अपनी आत्माहुति दे दी। इसमें गौरव हमारा नहीं, उसका है जिसने हमारे पशु को झेला, सहा और दुलारा है। माँ की जाति सदा से यही करती आयी है। · · 'हम सबकी होने के लिए अम्बा, एक दिन आम्रवन में आकाश से टपक पड़ी थी। अमातृ-पितृजात, कुल, गोत्र, नाम से परे, बस निरी अम्बा!'
'तो जगदम्बा के दर्शन करने ही सही, एक बार वैशाली आओ, काश्यप !'
'माँ बलायेंगी तो जरूर आऊंगा। वर्ना जहाँ भी हैं, वहीं से उनकी करुणमुखश्री को प्रत्यक्ष देख रहा हूँ। मैं उनसे ज़रा भी दूर नहीं हूँ। आँखों से नहीं, अन्तर से ही उनका दर्शन किया जा सकता है। · · 'लिच्छवि-कुमारों से एक ही अनुरोध है आज मेरा, तुम्हारे काम की तरंग इतनी, इतनी उद्दाम हो, कि पूर्णकाम होकर ही चैन पाये। आम्रपाली तब तुम में से हरेक की बहुत अपनी होगी। वैशाली का सारा सुवर्ण-रत्न तब उसकी चरण-धूलि होकर रहेगा। और उसकी आँखों की ममता तुम सबकी राह में बिछी होगी। · · पर जानता हूँ, यह नहीं होगा। - हो सका तो किसी दिन इतना समर्थ होकर वैशाली आऊंगा, कि तुम मेरी बात टाल न सको!'
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