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• और कुमार आसपास चारों ओर देखता हुआ, मनमाने श्लोक बोलने लगा । उनकी भाषा, उनके भाव, सभी अपूर्व और अनोखे हैं । न उनमें व्याकरण है, न कोश-भाषा है, न कोई पूर्व-निर्धारित छन्द है । लेकिन बुद्धि पर ज़ोर लाये बिना ही, सीधे समझ में उतरते चले जाते हैं। कुलपति उपाध्याय, सारा गुरुकुल, सर नॅवाये चुप हो रहे । किंकर्त्तव्य विमूढ़ । कुमार की गुरुकुल यात्रा, उसी सायान्ह में फिर लौटती दिखाई पड़ी ।
गुरुकुल तो सम्भव न हो सका । कुमार चन्द्रमा की कलाओं-सा दिन-दिन बढ़ता जा रहा है। बच्चों की-सी बोली बोलता है : पर बातें बड़ी-बड़ी करता है। सीखने-पढ़ने से मतलब नहीं लेकिन बहुत दूर की कोड़ियाँ लाता है । नित नये भाव, भाषा, विचार, आपोआप उसमें से फूटते आ रहे हैं । जैसे चट्टानों में से अकस्मात् झरने, या पेड़ों में नये-नये अंकुर फूटते हैं । वय आठ की है कि अठारह की, क्या अन्तर पड़ता है । बोली में निरा बालक है, पर बर्तन में गुरु-गंभीर, वाचा में वाचस्पति ! |
यह सब तो ठीक है : पर यह महानद तट की मर्यादा नहीं स्वीकारता । ऐसे कैसे चल सकता है। कहा नहीं जा सकता, कब प्रलय आ जाये । कोई. उपाय करना होगा कि लड़के का चित्त केन्द्रित हो । वह सारे समय किसी प्रवृत्ति में लगा रहे ।
माता-पिता ने सोचा, लड़का अन्तर्मुख स्वभाव का है, और इसकी वृत्ति शानात्मक है। इसे ज्ञान, कला, सरस्वती के आराधन में प्रवृत्त कर दिया जाये । सो नन्द्यावर्त प्रासाद के समूचे सप्तम खण्ड में उसके लिए एक वृहद् सरस्वतीभवन की रचना कर दी गई है।
मध्यवर्ती कक्ष में वाङ्गमय भवन रचा गया है । वहाँ विभिन्न प्रकार और रंगों के सुगंधित काष्ठों की नक्काशीदार चौंकियाँ जहाँ-तहाँ फैली हैं । उन पर रंग-बिरंगे रेशम और जरीतारों से बने आवेष्टनों में बंधे शास्त्र सजे हैं । धर्म, . अध्यात्म, दर्शन से लगाकर, नाना लौकिक-अलौकिक विद्याओं तथा विज्ञानों के सुलभ तथा दुर्लभ ग्रंथ वहाँ संग्रहीत हैं । कुछ चौकियों पर हैं, कुछ दीवारों के मेहराबदार आलयों में सजे हैं ।
बाहर की खुली छत में वैधशाला भी रच दी गई है। कि वहीं, ग्रह-नक्षत्रों की गति - विधियों से काल को नापा जा सके, गणित में बांधा जा सके। बड़ीबडी बिल्लोरी रज-घड़ियों में अनवरत रज गिरती रहती है। छत के एक
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