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आ मुझ पर सवारी कर । · ·और वहाँ कई रुपहले हिरन मेरे मित्र हो गये हैं । बहुत अच्छे लगते हैं · · · मुझे अपनी पीठ पर बिठा, खूब सैर कराते हैं . . । और वहाँ बेलों छाये घरौंदों में कोमल-कोमल ख़रगोश रहते हैं । वह सब बिछौना बन कर मुझे सुलाते हैं। इतना प्यार करते हैं, कि मैं भी उनके साथ खरगोश हो जाता हूँ।'
सुनते-सुनते माँ को लोकान्तर-सा अनुभव हुआ। कितनी ही आदिम स्मृतियों में वह खो गई। जिज्ञासा से भर कर बोली : _ 'अच्छा मान, और क्या-क्या हैं तेरे खेल' . . ?'
'और तरह-तरह के पेड़ हैं वहाँ । भेदभरी वनियां हैं। जिनकी कहानी तुम सुनाती हो। उनमें सुनहले-रुपहले साँप हैं। बहुत प्यारे साँप · 'मेरे हाथ-पैरों में लिपट जाते हैं और सर पर छत्र तान देते हैं। बापू का रत्नों का छत्र फीका लगता है, उसके सामने।'
'और क्या-क्या हैं तेरे खिलौने ? कौन हैं तेरे खेल के साथी ?'
'यहां के सखा-सहेली तो तुमने सब छुड़ा दिये, मां। और ये खिलौने तुम्हारे सब छोटे लगते हैं, झूठे खिलौने ! हम तो सच्चीले खिलौनों से खेलते हैं। सूरज से कभी गेंद खेलते हैं, कभी उसे लटू बनाकर घुमाते हैं, कभी उसे चकरी बनाकर फिराते हैं । और कभी मन में आता है, तो उसे विमान बनाकर आसमान की सैर करते हैं। · · 'जाने कितने लोकों और देशों में वह हमें ले जाता है। तुमने सुने भी नहीं होंगे, ऐसे-ऐसे देश वह हमें दिखाता हैः बेचारा सूरज, अच्छा लड़का है । खिलौना भी बन जाता है, साथी खिलाड़ी भी, और हमारी सवारी भी।
'और चाँद ?'
'अरे माँ, चाँद के तो क्या कहने हैं ? वह तो शीतल हीरों के पानी भरा तालाब है । रात को तुम सो जाती हो न, तब हम उस तालाब की लहरों पर अपना बिस्तर लगाते हैं । और चाँद खुद भी आकर, हमारे साथ बैठ कर बातें करता है । और हमारी तो सब लड़कियाँ तुमने छुटा दीं। तो क्या हुआ, हजारों तारा-लड़कियाँ आकर हमें घेर लेती हैं। हमारे साथ आँख-मिचौनी खेलती हैं, घूमर नाचती हैं, हमें रंग-बिरंगे कंडील देती हैं, फानस देती हैं। और सब मिलकर कहती हैं-अब हम पर लेट जाओ, सो जाओ, आराम करो, राजकुमार !'
महारानी-माँ, इस क्षण न रानी रह गईं हैं, न महल में हैं। न नाने कहां, कहीं और हैं। ऐसे जगत में, जो कहने में नहीं आता।
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