________________
७७
'तो माँ, तुम्हारे और बापू के भरोसे जीते हैं वे ? यही न ? बाघ की वे सुनहरी धारियाँ किसने बनाई, माँ ? हिरनों की सुन्दर आँखें और चंवरी गाय के चंवर किसने बनाये ? खुले जंगलों, हवाओं, बहती नदियों, चट्टानों, पेड़ों में से वे सब बने हैं। जिसने उन्हें बनाया है, वही उनका रखवाला है, माँ ।'
'अच्छा तो किसने बनाया है, उनको ?'
'पता नहीं, हमने उन्हें नहीं बनाया । सब अपने आप बने हैं, सब अपने-अपने रखवाले हैं । तुम कौन होते हो उन्हें घेरने वाले, बाँधने वाले, पालने वाले ?'
'देख बेटा, तू राजपुत्र है । कल राजा बनेगा । राजा तो धरती का मालिक, और सबका पालनहार होता ही है। तेरे पिता पृथ्वीनाथ हैं, बेटा! और तू भी वही होगा कल को !'
'हम तो अपने ही राजा हैं, माँ, और किसी के नहीं। हमारा राजा भी और कोई नहीं । सब अपने-अपने राजा हैं । सब अपने-अपने रक्षक हैं। अरे माँ, एक चींटी भी तुम बना नहीं सकते, एक अंकुर तक उगा नहीं सकते। तुम उनके राजा कैसे ? और तुम उनके प्राण बचाओगे ? उन्हें पालोगे ? तुम्हारे राजा से कह दो, वे मेरे राजा नहीं । हम तो अपने ही सम्राट हैं । हमको ऐसा ही लगता है, माँ, हम क्या करें। तुम्हारा महल बहुत छोटा है माँ, यहाँ हमारा जी नहीं लगता ।'
एक गहरी चुप्पी छायी हुई है। महारानी त्रिशला पराहत, निरुत्तर, सुनती हुई, बस इस बेटे का मुंह जोह रही हैं, जिसे अपना कहने में कठिनाई होने लगी है । और अचानक 'अच्छा माँ, फिर मिलेंगे' कह कर वर्द्धमान जाने कब जा चुका था ।
'महाराज और महारानी को एकाएक ख़बर मिली कि प्राणी-उद्यान उजाड़ पड़ा है। सारे पशु-प्राणी अपनी वन्य- मातृभूमि को लौट चुके हैं । रखवाले, पहरेदार, सब गायब हैं । जाँच-पड़ताल हुई। पर कौन उत्तर दे ? पशु-पंखी ही नहीं, राजाश्रित रक्षपाल भी अपनी रोटी की चिन्ता छोड़, भाग खड़े हुए हैं। कहीं तो मिलेगी ही ।
महाराज सिद्धार्थ ने प्रश्नायित आँखों से महारानी त्रिशला की ओर देखा । महारानी उत्तर में आँखें ढलका कर चुप हो रहीं । बूझ कर भी बात पहली ही बनी रही।
माँ ने सोचा वर्द्धमान अब बड़ा हो चला है । उसे महल की परिधि में बाँध कर रखना उचित नहीं । आज तो इतनी-सी बात है, कल जाने क्या-क्या उपद्रव होने लग जायें । • और वर्द्धमान को जहाँ चाहे जाने की छुट्टी मिल गई ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org