________________
हम राजाओं के राजा हैं
बालक तीन वर्ष का है कि तेरह वर्ष का, निर्णय करना कठिन है । माँ और पिता से तो वह तुतलाता ही है : पर पुरजन कहते हैं, कि एकदम ठीक जनपदी भाषा बोलता है : पंडित कहते हैं कि शुद्ध संस्कृत बोलता है। परिजन सब सुनकर अचरज से ठगे-से रह जाते हैं।
___ इधर एक नया उपद्रव खड़ा कर दिया उसने । राज-प्रांगण की सीमा लाँघ कर नगर में भी फेरी दे आता है। राह चलते लोगों से बतियाता है। प्यार से कोई पकड़ने दौड़े तो हवा की तरह हाथ से निकल जाता है। पूजा-पाठी ब्राह्मणों की शामत आ गई : जाकर कहता है : 'ओ भूदेव, पाठ बंद : हमारी बात सुनो! पूजा बन्द : हमें पूजो! यज्ञ बन्द : हमारा यज्ञ करो !' बेचारा ब्राह्मण आपा खो देता है । 'अग्निमीले पुरोहितं' कहते-कहते बरबस ही 'नमः श्री वर्द्धमानाय !' बोलने लग जाता है।
कब कहां दिखाई पड़ जायेगा कुमार, कहना कठिन है । नगर में एक प्रवाद फैला है : और खबर राजमहल में भी पहुंच गई है। एक सवेरे किसी नगरजन ने देखा : हिरण्यवती के तट पर एक मुक्तकेशी ब्राह्मणी, बछड़े के लिए रम्भाती गाय-सी दौड़ी फिर रही थी। इस ओर से दौड़ता आया कुमार वर्द्धमान । भान भूली ब्राह्मणी ने उसे छाती में भर लिया। उसके स्तनों से गंगा उमड़ पड़ी : हिमालय-सा उजला कुमार धाता ही चला गया। ब्राह्मणी इतनी विकल और आत्म-विभोर हो गई, कि उसे होश ही नहीं। • एक अंतिम आघात-सा पाकर वह होश में आई। देखा कि लड़का दौड़ता हुआ कछार के पार दूर निकल गया है। आँचल से आँखें पोंछती, वह स्तंभित देखती रह गई। उसे नहीं समझ आया कि कहाँ • जाये . !
___ इसके बाद तो ऐसी और भी कई खबरें मिली हैं। नगर-वधुओं के पानी खींचते हाथों की कंकण-ध्वनि में सहसा शिशु का पैजन छमक उठता है। हाथों
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org