Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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२८ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ
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दहेज का दैत्य
श्रेष्ठ भावना समाज को दहेज का दैत्य खा रहा है । जरूरत है ऐसे श्रेष्ठ भावना से अल्प क्रिया भी महान फलदायक हो सामाजिक वीरों की जो अपने पुत्रों की शादी के अवसर जाती है। जीरण सेठ श्रेष्ठ भावना से तिर गया । चन्दनपर प्राप्त दहेज को त्याग कर केवल कन्या लेकर अपने घर बाला ने उड़द के बाकुले बहराये, किन्तु श्रेष्ठ भावना से आ जाये।
महान् लाभ उठा सकी। __ अपूर्व उदाहरण
श्रवण करो! धर्मरुचि अणगार को धन्य हो, जो अपने संयम की वीतराग वाणी का श्रवण करने का अवसर ढूंढ़ना रक्षा के लिए जहर भी पी गये । ऐसा उदाहरण जिस पर- चाहिये । और जब अवसर मिले तो तन्मय होकर वाणी म्परा में मौजूद हो उस परम्परा के साधक धर्मभ्रष्ट हो सुनना चाहिये क्योंकि श्रवण करने से ही ज्ञान विज्ञान प्राप्त जायें तो यह बड़े दुःख की बात है।
होता है । शास्त्रों में कहा हैयह घोर अज्ञान
“सवणे नाणे विनाणे" बड़े-बड़े चक्रवर्ती सम्राटों ने, धनाढ्य व्यक्तियों ने जिस
असत्य मत कहो धन-वैभव रूप मेल को उतार कर फेंक दिया, आज के रात को रात कहो, दिन को दिन । किसी भी लालच श्रावक लोग उस मेल को प्राप्त करने के लिए कुकृत्य करें में पड़ कर रात को दिन मत कहो। धर्म को धर्म और तो यह घोर अज्ञानता है।
अधर्म को अधर्म कहो । किसी भी दबाव में आकर अधर्म छोटों का सम्मान
को धर्म मत कहो, कुगुरु को गुरु मत कहो । जो अपने से छोटे हैं उनका भी सम्मान करना
पाप पर पश्चात्ताप चाहिए । उनकी सुख-सुविधा का अपने से ज्यादा ध्यान पूर्व में किये गये पापों को केवल पश्चात्ताप करने के रखना चाहिये । कार्य स्वयं करें किन्तु यश छोटों को देना लिए या उनका प्रायश्चित करने के लिए याद करो। चाहिये।
लालच की दृष्टि से पहले के पापों को याद करोगे तो विनय
जिनरक्ष की तरह पतन प्राप्त करोगे। भक्ति, भाव और विनय करने वाला सद्पुरुष स्वयं
शंका समाधान में संकोच क्यों ? तिरता है और औरों को भी तिरा देता है। पंथक ने शंका होने पर उसका निर्णय करना चाहिए। निर्णय शिथिलाचारी गुरु को जाग्रत कर संयम मार्ग में स्थित कर करने से ही समाधान होता है। अपनी बात पूछने में दिया।
किसी तरह का संकोच नहीं होना चाहिये । गौतम स्वामी समय का सदुपयोग
ने भगवान महावीर से हजारों प्रश्न पूछे तभी तो तत्त्वज्ञान
स्पष्ट हुआ। रात और दिन का क्रम चल रहा है, इस क्रम में मास और वर्ष निकलते चले जाते हैं । बनने वाले इसमें बन
कसौटी करो जाया करते हैं और बिगड़ने वाले बिगड़ जाते हैं।
किसी दुराग्रह में तो नहीं पड़ना चाहिये किन्तु किसी .. सावधानीपूर्वक समय का सदुपयोग करिये ।
भी बात को स्वीकार करने के पहले उसे वीतराग-विज्ञान न्याय को स्वीकार करो
की कसौटी पर कस लेना चाहिये । भगवान की आज्ञा के
विरुद्ध कुछ भी स्वीकार नहीं करना चाहिये । न्याय की बात करना आसान है किन्तु न्याय को स्वीकार करना कठिन है। परस्त्रीगामी दुराचारियों को
सभी स्थितियों में समान रहो ! दण्ड देने वाला रावण स्वयं जब सीता को चुरा कर अप- सर्वदा एक समान स्थिति नहीं रहती है। एक कहाराधी हो गया तो दण्ड की बात भूल गया।
वत है, "कभी घी घणां, कभी मुट्ठी चणां, कभी वे भी
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