________________
१८
व्यक्तित्व और कृतित्य
"आप साधु हैं, निःश्रेयस के, मुक्ति के, परमात्म-भाव के साधु अर्थात् साधक ! आपका लक्ष्य है-यात्म-भाव की साधना, स्वरूप की खोज । आपका मिशन है-वासना के बन्धनों को तोड़ना, कर्मों को चकनाचूर करना और अविद्या एवं माया के जाल को छिन्न-भिन्न करना । अापके वरद कर-कमलों में आपका अपना हित संरक्षित है और सदा-सर्वदा सुरक्षित है-विश्व के प्राणीमात्र का हित !
आप श्रमण हैं, अपने जीवन की चरम ऊंचाइयों को प्राप्त करने के लिए सतत श्रम करने वाले वीर अात्मा ! अापको श्रम करना है, संघर्ष करना है, लड़ना है-अन्दर के शत्रुओं से, विकारों से, वासनाओं से। अापका श्रम है-जैनत्व के माध्यम से जिनत्व का स्व में प्रतिष्ठान । अापको अपने ही श्रम से, अपने ही पुरुपार्थ से, अपने ही प्रयत्न से, जिन वनना है, विजेता बनना है। आपकी विजय-यात्रा बीच में किसी मंजिल पर रुकी रहने के लिए नहीं है। आपकी विजय-यात्रा का चरम लक्ष्य है-अनन्त-अनन्त विराट् आत्म-सानाज्य का सर्वतंत्र-स्वतंत्र सम्नाट वनना !
आपकी प्रतिष्ठा आज की नहीं, कल की नहीं, हजार-दो-हजार वर्षों की नहीं, महाकाल के आदि-हीन युग से आपकी यशोगाथा दिग्दिगन्त में गूंजती आ रही है। भू-मण्डल पर आपकी अमल-धवल कीर्तिपताका अनन्त-अनन्त काल में अविराम भाव से फहराती रहेगी। काल की सीमाएँ आज तक न आपको घेर सकी हैं, और न भविष्य में ही घेर सकेंगी। 'नमो लोए सव्व साहूणं' के रूप में आपका पवित्र जप आज भी कोटि-कोटि जनता के मनोमल को धोने के लिए गंगा के विशाल प्रवाह के समान उपयोग में आ रहा है। हां, तो आप अजर हैं, अमर हैं। आपका पवित्र जीवन अजर है, अमर है। आपका निर्मल यश भक्तों के चिदाकाश में अजर है, अमर है।
विश्व के दूसरे साधु अपने-अपने पथ पर बढ़े और फैले, किन्तु शीघ्र ही भूले और भटके भी। आज से नहीं, चिर अतीत से दूसरे साधु मठों में वन्द रहे हैं, लक्ष्मी के चरणों में ठुकराते रहे हैं, सत्ताप्राप्त अधीश्वरों के कृपाकटाक्ष के लिए लालायित रहे हैं। और तो क्या, सुरा-सुन्दरी तक के कुचक्र से अपने को बचा नहीं पाए। यह