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सर्वतोमुखी व्यक्तित्व
इस आगामी सादड़ी सम्मेलन में यदि हम इतना काम कर सके, तो फिर हमें युग-युग तक जीने से कोई रोक नहीं सकता। हमारे विधान को कोई तिरस्कृत नहीं कर सकेगा। हमारी विगड़ती स्थिति सुधर जाएगी, हम गिरते हुए फिर उठने लगेंगे। हम रेंगते हुए फिर उठकर चलने लगेंगे, और फिर ऊंची उड़ान भी भर सकेंगे।
आयो, हम सब मिलकर सादड़ी सम्मेलन को सफल बनाने का पूरा-पूरा प्रयत्न करें, ईमानदारी से कोशिश करें। हमारी भावी सन्तान हमारे इस महान् कार्य को बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय कह सके । हमारे इस जीवित इतिहास को स्वर्णाक्षरों में लिख सके । हमारी आने वाली पीढ़ी हमारे इस महान् निर्णय पर गर्व कर सके। आने वाला युग हमारी यशोगाथा का युग-युग तक गान करता रहे । हमारा एक ही कार्य होना चाहिए, कि हम सादड़ी में सब सफल होकर ही लौटें । सम्मेलन को सफल करना ही हमारा एक मात्र ध्येय है।" संघटन में निष्ठा :
उपाध्याय अमर मुनि जी महाराज के मन में प्रारम्भ से ही यह भावना रही है, कि श्रमण-संघ में किसी प्रकार के मत-भेद पैदा न हों। सव एक-दूसरे के सहयोग से काम करें । सब एक-दूसरे का आदर करें। संघ में किसी प्रकार भी फूट पैदा नहीं होनी चाहिए। हर तरह से उन्होंने संघ को मजबूत बनाने के लिए सक्रिय प्रयत्न किए हैं। अनेक वार अनेक गहन उलझनों को सुलझाने के विवेकपूर्ण प्रयत्न किए हैं। जो संघटन एक बार वन गया है, वह फिर टूटने पर वन नहीं सकेगा। यह विचार उन्होंने बार-बार कार्यकर्ता मुनिवरों के समक्ष और गृहस्थों के सम्मुख भी दुहराया है। संघ को तोड़ने वाले हर प्रयत्न का उन्होंने अनेक बार डटकर विरोध भी किया है । श्रमण-संघ के संघटन में उनकी बहुत गहरी निष्ठा रही है।
सादड़ी और सोजत्त सम्मेलन के बाद ही कुछ लोगों ने श्रमणसंघ के संघटन को छिन्न-भिन्न करने का प्रयत्न प्रारम्भ कर दिया था। आश्चर्य तो इस वात का है, कि कुछ लोग तो श्रमण-संघ में रह कर भी अन्दर ही अन्दर उसे तोड़ने की कोशिश कर रहे थे। घर के चिराग से घर में ही आग लग रही थी। यह सब कुछ कवि जी महाराज को