Book Title: Amarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 196
________________ व्यक्तित्व और कृतित्व प्रतिविम्ब भी तुम्हें हाथ जोड़ेगा । और यदि तुम दर्पण को चांटा दिखाओगी, तो वह भी अपने प्रतिविम्व के द्वारा तुम्हें चांटा दिखाएगा । यह तो गुम्बद की आवाज है, जैसी कहे, वैसा सुने । यदि तुम सव के साथ प्रेम का व्यवहार करोगी तो वे सब भी तुम से प्रेम का ही व्यवहार करेंगे । और यदि तुम घमण्ड में प्राकर किसी प्रकार का दुर्व्यवहार करोगी, तो वदले में तुम्हें भी वही अभद्र व्यवहार मिलेगा । तुम देखती हो, वे भी तुम से हार्दिक प्रेम करती है । और जिनसे तुम घृणा करती हो, वे भी तुम से उसी प्रकार घृणा करती हैं। बुराई और भलाई बाहर नहीं, तुम्हारे अपने ही मन में है । भगवान् महावीर का यह दिव्य सन्देश सदा याद रखो कि - ' अपने अन्दर देखो ।' १८८ कोयल के मीठे बोल – इस पाठ में कवि श्री जी ने मधुर भाषण और मिष्ठ वाणी के सम्बन्ध में लिखा है और कहा है कि मधुर वाणी सहज ही दूसरे को अपनी ओर ग्राकर्षित कर लेती है । मधुर भाषी व्यक्ति - भले ही वह नर हो या नारी, दूसरों से अपने काम को सहज ही करा लेता है । मधुर वाणी की वीणा में वह शक्ति है कि सुनने वाला मुग्ध हो जाता है । "जिस नारी के कण्ठ में माधुर्य होता है, उसके घर में सदा शान्ति का राज्य रहता है । और यदि कभी किसी कारण अशान्ति होती भी है, तो ज्यों ही नारी की मधुर वाणी की वीणा वजना प्रारम्भ होती है, त्यों ही वह प्रशान्ति लुप्त हो जाती है और उसके स्थान में सुख-शान्ति का समुद्र हिलोरें मारने लगता है । भगवान् महावीर की माता कितना मधुर बोलती थीं ? भगवान् महावीर की शिष्या चन्दन वाला की वाणी में कितनी अधिक मिठास थी ?"

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