Book Title: Amarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 215
________________ बहुमुखी कृतित्व २०७ में जैन-साहित्य का अपना एक विशिष्ट स्थान है। जैन-धर्म के सुप्रसिद्ध विद्वान् जैन आचार्यों ने धर्म-शास्त्र, राज्य-शास्त्र, समाज-शास्त्र और दर्शन-शास्त्र के अतिरिक्त व्याकरण, काव्य, कोष, छन्द और संगीत आदि विषयों पर भी विपुल ग्रन्थ-राशि का निर्माण किया है, जो मानव-जाति के प्रति एक अनुपम भेंट कही जा सकती है । जैन-साहित्य इने-गिने वृद्धिजीवी लोगों के मनोरंजन मात्र के लिए केवल शब्दजाल लेकर नहीं आया। उसमें मानव-संस्कृति का प्रतिविम्ब पूर्ण-रूपेण उतर आया है। मानव-जाति के कल्याण के लिए वह बड़े ही उदार और भव्य विचार प्रस्तुत करता है। विश्व-कल्याण की भावना से जैन-साहित्य का अक्षर-अक्षर सराबोर है। परन्तु खेद है, कि आज का जैन-समाज अपने इस साहित्यगौरव के प्रति बहुत ही उपेक्षापूर्ण व्यवहार कर रहा है। प्राचीन साहित्य का सुन्दर प्रकाशन और नवीन साहित्य का मौलक उद्भावनदोनों ही अोर से लापरवाही बरती जा रही है। यही कारण है कि जैन समाज के लिए वह अपना पुराना गौरव आज केवल स्वप्न हो गया है। अस्तु, जैन समाज के गौरव को लक्ष्य में रखते हुए एक ऐसी संस्था की आवश्यकता है, जिसके द्वारा प्राचीन और अर्वाचीन साहित्य, भाव, भाषा, शैली और मुद्रण-कला की दृष्टि से सर्वाङ्ग सुन्दर रूप में प्रचारित हो सके । आप सब ने जिस उत्साह और लगन से 'सन्मति ज्ञानपीठ' स्थापित किया है । अतः यह पूर्ण विश्वास है कि इस महत्त्वपूर्ण कार्य को आप कर सकेंगे । यह संस्था किसी व्यक्ति-विशेष के नाम पर न होकर भगवान् महावीर के नाम पर है। अतएव इस संस्था को विना किसी साम्प्रदायिक भेद-भाव के समस्त जैन-समाज की सेवा करने का संकल्प रखना चाहिए। आप सब की यह हार्दिक अभिलाषा होनी चाहिए कि समाज के प्रत्येक सुयोग्य लेखक की कृति के लिए 'ज्ञान पीठ' की ओर से उचित आदर एवं सम्मान प्राप्त हो । मैं इस संस्था को किसी व्यक्ति-विशेष या सम्प्रदाय-विशेप की पिछलग्गू बनाना कतई पसन्द नहीं करूंगा।" 'सन्मति ज्ञानपीठ' के मूल प्रेरक कविरत्न उपाध्याय श्री अमरचन्द्र जी महाराज हैं । इस संस्था के द्वारा उन्होंने समाज की अविस्मर

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