Book Title: Amarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 218
________________ २१० व्यक्तित्व और कृतित्व अाज जैन-समाज के तीन महान् सम्प्रदाय हैं- स्थानकवासी, श्वेताम्बर और दिगम्बर । इनमें श्वेताम्बर और दिगम्बर तो अपने-अपने साहित्य की ओर थोड़ा-बहुत लक्ष्य दे भी रहे हैं। दोनों ही सम्प्रदायों के चार-पांच विद्वान् भी ऐसे हैं, जो वरावर प्राचीन साहित्य का अन्वेषण तथा नवीन साहित्य का निर्माण कर रहे हैं। उनकी सम्प्रदाय भी उनको यथाशक्ति अधिक-से-अधिक सहयोग प्रदान कर रही है। परन्तु स्थानकवासी समाज की उदासीनता तो इस दिशा में बड़ी ही घातक दशा पर पहुँची हुई है। स्थानकवासी समाज का मूल प्राचार आगम-साहित्य है। आज तक हम आगमों का कोई प्रामाणिक संस्करण नहीं निकाल पाए हैं। एक-दो स्थानों से इस ओर जो प्रयत्न हुआ भी है, उसके पीछे न तो गम्भीर चिन्तन है, और न अद्यतन दृष्टिकोण ही। अतः वह आज के प्रगतिशील युग में आदरणीय स्थान नहीं पा सका । अव रहा नवीन साहित्य, उसके सम्बन्ध में जो गड़बड़ है, वह सब के सामने है। टूटी-फूटी भापा में लूली-लंगड़ी दो-चार तुकवन्दियाँ बना लेना ही यहाँ कविता है । इधर-उधर के दो-चार जीवन-चरित्र खिचड़ी भाषा में लिख देना ही यहाँ गद्य-साहित्य है । उस साहित्य के न तो भाव ही आज के युग को छूते हैं, और न भाषा ही युगानुकूल है। यदि यही दशा रही और कुछ सुधार न किया गया, तो मुझे कल्पना आती है कि हमारी आने वाली पीढ़ी के युवक आजकल के साहित्य को देखकर, साश्चर्य एवं सलज्ज भाव से यह कहेंगे कि"वीसवीं शताब्दी में हमारे पूर्वज वौद्धिक दृष्टि से विल्कुल ही पिछड़े हए थे, जो यह कूड़ा-कर्कट लिखकर हमारे लिए डाल गए हैं।" यह वात जरा कड़वी लिखी गई है, परन्तु सत्य की रक्षा के लिए कड़वापन सहना ही पड़ेगा। कविरत्न उपाध्याय श्री पण्डित अमरचन्द्र जी महाराज स्थानकवासी समाज के एक उज्ज्वल रत्न हैं। आपकी विद्वत्तापूर्ण प्रतिभा अपनी समाज में ही नहीं, पड़ौसी समाजों में भी प्रशंसा प्राम कर चुकी है। आपके हृदय में बहुत दिनों से उपर्युक्त साहित्य सम्बन्धित वेदना घर किए हुए थी। आप चाहते थे कि स्थानकवासी समाज के गौरव

Loading...

Page Navigation
1 ... 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225