Book Title: Amarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 224
________________ २१६ व्यक्तित्व और कृतित्व और कृतित्व' का परिचय मात्र ही है। क्योंकि उनका व्यक्तित्व और कृतित्व अभी गंगा के प्रवाह की तरह प्रवहमान है। उससे प्रेरणा, उत्साह और सन्देश अभी मिल रहा है। उनके कृतित्व का बहु-भाग तो अभी तक अप्रकाशित ही पड़ा है। इस दृष्टि से प्रस्तुत पुस्तक उनके सम्पूर्ण जीवन का प्रतिनिधित्व न करके परिचय मात्र ही है। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व की विभिन्न विधाओं के सम्बन्ध में एक दृष्टिकोण. अवश्य ही मिल जाता है। कवि श्री जी की विहार-यात्रा के सम्बन्ध में प्रस्तुत पुस्तक में कुछ भी नहीं लिखा गया है। इसका कारण यह है कि उनकी विहारयात्रा के विषय में मैं एक स्वतन्त्र पुस्तक लिख रहा हूँ। फिर भी यहाँ पर इतना उल्लेख कर देना आवश्यक है कि कवि श्री जी ने भारत के विभिन्न प्रान्तों की विहार-यात्रा की है। जैसे---संयुत्त-प्रान्त (उ० प्र०) पंजाब, मारवाड़, मेवाड़, अजमेर-मेरवाड़ा में वे लगभग दश वर्षों तक परिभ्रमण करते रहे हैं। आज-कल कवि श्री जी महाराज विहार प्रान्त, वंगाल और कलिंग (उड़ीसा) की विहार-यात्रा कर रहे हैं। उड़ीसा प्रान्त में जैन मुनि की सम्भवतः यह सबसे पहली विहार-यात्रा है। उड़ीसा में वे वालेसर, कटक, भूवनेश्वर, उदयगिरि और जगन्नाथ पुरी तक जाने का विचार कर रहे हैं। आज जव कि ये पंक्तियाँ लिखी जा रही हैं, वे कटक में विराजित हैं। वैसे उनके जीवन की सबसे लम्बी और सबसे महत्त्वपूर्ण विहार-यात्रा कानपुर से काशी, और काशी से कलकत्ता की कही जा सकती है । सौराष्ट्र, महाराष्ट्र, और मालव भूमि-जाने का भी उनका वहत वार विचार हया है। परन्तु सम्मेलनों के कारण और कुछ अपने स्वास्थ्य के कारण वे अपनी इस भावना की पूर्ति अभी तक नहीं कर सब कुछ क्षेत्र-स्पर्शना पर अाधारित है। _उपाध्याय श्री जी महाराज ने समाज को बहुत कुछ दिया है, और भविष्य में भी वे समाज को बहुत कुछ दे सकेंगे। उनके पावन जीवन का वेगवान् यह प्रवहमान प्रवाह युग-युग तक प्रवाहित रहे । यही समस्त समाज की मंगल-भावना और शुभ अभिलाषा है।

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