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व्यक्तित्व और कृतित्व
बस, यही 'पर' सारी गड़वड़ियों की जड़ है। यह मानसिक असत्य और दुर्वलता का परिणाम है। यही 'पर' जव पक्षी के जीवन में लगते हैं, तो वह ऊपर आकाश में उड़ने लगता है, किन्तु जब यही 'पर' मनुष्य को लगते हैं, तो वह नीचे गिरने लगता है। यही 'पर' हमारे जीवन को ऊँचा नहीं उठने देता।"
"पश्चिम अपनी जीवन-यात्रा अणु के बल पर चला रहा है, और पूर्व सह अस्तित्व की शक्ति से । पश्चिम देह पर शासन करता है, और पूर्व देही पर । पश्चिम तलवार तथा तीर में विश्वास रखता है, पूर्व मानव के अन्तर मन में, मानव की साहजिक स्नेह शीलता में ।
_आज की राजनीति में विरोध है, विग्रह है, कलह है, असन्तोष और अशान्ति है । नीति, भले ही राजा की हो, या प्रजा की, वह अपने आप में पवित्र है, शुद्ध है और निर्मल है । क्योंकि उस का कार्य जग कल्याण है, जग विनाश नहीं । नीति का अर्थ है-जीवन की कसौटी, जीवन की प्रामाणिकता, जीवन की सत्यता । विग्रह और कलह को वहाँ अवकाशं नहीं। क्योंकि वहां स्वार्थ और वासना का दमन होता है और धर्म क्या है ? सव के प्रति मंगल भावना। सव के सुख में सुख-बुद्धि और सव के दुःख में दुःख-बुद्धि । समत्व-योग की इस पवित्र भावना को धर्म नाम से कहा गया है । यों मेरे विचार में धर्म और नीति सिक्के के दो वाजू हैं। दोनों की जीवन-विकास में आवश्यकता भी है।"