Book Title: Amarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 203
________________ बहुमुखी कृतित्व १६५ जिनेन्द्र स्तुति के विषय में आपने कविश्री जी के स्वयं के विचार पढ़े । इस पर से यह भली-भांति समझा जा सकता है कि उन्होंने यह जिनेन्द्र स्तुति कितने भक्तिपूर्ण हृदय से लिखी है । भाव, भाषा और शैली की दृष्टि से जिनेन्द्र स्तुति लघुकाय होकर भी एक सुन्दर कृति है । वीर - स्तुति के सुन्दर पद्यानुवाद के वाद कविश्री जी ने महावीराष्टक का भी सुन्दर पद्यानुवाद किया है । महावीराष्टक संस्कृत का स्तोत्र है, जिसमें आठ श्लोकों में भगवान् महावीर की स्तुति की गई है । वीर स्तुति और महावीराष्टक का पद्यानुवाद करने के बाद कविश्री जी के मन में यह विचार ग्राया होगा कि वे भी कोई स्तुति-विषयक कृति लिखें, फलतः उन्होंने हिन्दी में जिनेन्द्र-स्तुति संस्कृत छन्दों में लिखी है, जिसकी भाषा हिन्दी है । कुछ नमूने देखिए श्री ऋषभ जिन स्तुति : " श्रेयः शाली ऋषभ जिन जी ! कीर्ति - गाथा तुम्हारीगाऊँ क्या मैं ? अमर गुरु की भी गिरा शक्ति हारी ! ग्राके सोई अखिल जनता आपने थी जगाई, देके शिक्षा विरति रति की, ज्ञान-गंगा बहाई !" श्री नेमि जिन-स्तुति : "नेमि स्वामी ! तरुण वय में काम का वेग मारा, क्या ही सींची पशु-जगत् में प्रेम -- पीयूष - धारा ? दीक्षा ले के प्रखर तप से केवल ज्योति पाई, भोगाभ्यासी मनुज- गण को त्याग - गीता सुनाई !" श्री पार्श्व जिन स्तुति : "पार्श्व स्वामी ! कमठ यति के दम्भ का दुर्ग तोड़ा, अन्ध-श्रद्धा-विकल जनता का अधः लक्ष्य मोड़ा ! धूनि में से अहि-युगल को भस्म होते वचाया, घूमे चारों विदिश जग में सत्य - डंका बजाया !" श्री महावीर जिन-स्तुति : "वीर स्वामी ! अमित- करुणागार वैराग्यधारी ! त्यागी सारी नृपति- विभुता पाप-पूजा निवारी !

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