Book Title: Amarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 204
________________ १६६ व्यक्तित्व और कृतित्व भूलू कैसे विपय-सुख के तुच्छ से विन्दु में मैं, घोऊँ पापाविल हृदय त्वत्प्रेम के सिन्धु में मैं।" महावीराष्टक स्तोत्र कवि श्री जी ने संस्कृत भापा में भी स्तोत्र रचना की है। उन्होंने संस्कृत में 'महावीराष्टक' लिखा है, जिसमें भावना का वेग है, शब्दों का चमत्कार है और भापा का वेगवान् प्रवाह है। इस स्तोत्र का छन्द द्रुतविलम्बित है। उदाहरण के लिए उसके दो पद्य यहाँ उद्धृत कर रहा हूँ"सकल-शक्र-समाज-सुपूजितं, सकल-संपति-संतति-संस्तुतम् । विमल-शील-विभूषण-भूषितं, भजत तं प्रथितं त्रिशाला-सुतम्" ||१|| "सरल-सत्य-पथे सुमनोहरे, विचलिता जनता विनियोजिता । खल-दलं सकलं सरलीकृतं, भजत तं प्रथितं त्रिशला-सुतम्" ||६||

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