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व्यक्तित्व और कृतित्व तरह वह प्रतिपाद्य विषय की ओर अग्रसर होती हुई, लहराती हुई, धरातल से उठकर गगनतल को स्पर्श करती हुई-सी जान पड़ती है । उनके सांस्कृतिक भापणों में भारतीय संस्कृति की आत्मा वोलती है । अतः उनके मननीय प्रवचनों में जीवन का स्वागीण विश्लेषण वड़ा ही विलक्षण वन पड़ता है। उनके भाषणों की मार्मिकता का अंकन 'सामाहिक हिन्दुस्तान' की निम्नलिखित पंक्तियों से कीजिए
जैन मुनि अमरचन्द्रजी उपाध्याय के प्रवचनों को सुनने का जिन लोगों को अवसर मिला है, वे जानते हैं कि उनकी वक्तृत्व-कला, विषय-प्रतिपादन की गैली और प्रोजस्विनी भाषा से प्रभावित हुए बिना कोई भी नहीं रह सकता। फिर उनका धारा-प्रवाह, चिन्तनप्रधान, माधुर्यपूर्ण भापण जिस वातावरण की सृष्टि करता है, वह श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध कर देता है।"
दिल्ली, आगरा, व्यावर, उदयपुर, अजमेर, पालनपुर, जोधपुर और जयपुर आपके उन गम्भीर भापणों को कभी नहीं भूल सकता, जिन्होंने जैन एवं इतर जनता में एक सांस्कृतिक लहर दौड़ा दी थी
और समाज में एक नया प्राण फूक दिया था। सोजत में मंत्रिमंडल की प्रथम गोष्ठी में आपने अपनी विद्वत्तापूर्ण सांसदिक वक्तृता का साकार परिचय देकर श्रमण-वर्ग को आश्चर्यचकित कर दिया था। पुराणतत्त्व भी आपकी वहुश्रुतता, अगाध पाण्डित्य और प्रोज-भरी वक्तृता के कायल बन कर यही कहने को मजबूर हो गए थे कि-"जैन-समाज के बीच यह एक ही हस्ती है।"
व्यावर से विदा होते समय जैन गुरुकुल, व्यावर में 'धर्म और परम्पराएं' विषय पर जो उन्होंने महत्त्वपूर्ण भाषण दिया था, वह जैन इतिहास की सर्वश्रेष्ठ वक्तृताओं में स्थान पाएगा। 'भारतीय संस्कृति' पर उनके एक भाषण को सुनकर अजमेर प्रान्त के श्री मुकुट बिहारीलाल भार्गव, एम० ए० एल-एल वी०, एम० एल० ए० ने गद्गद होकर कहा था
"अाज का प्रवचन सुनकर मैं मुग्ध हो गया है। कंसी मनोरम गैली है, कितना गहन चिन्तन और मनन है, कितनी उदात्त भावना है और कितने ऊँचे विचार हैं ! कविश्री जी के उपदेश की लड़ियां मेरे