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मन्त्र - साहित्य
जैनों का मन्त्र - साहित्य बहुत ही विशाल और विस्तृत है। जैन आचार्यों ने अपने-अपने युग में आवश्यकता के अनुसार इसे पल्लवित एवं पुष्पित किया है । यह मन्त्र - साहित्य प्रायः प्राकृत और संस्कृत में है । उस सम्पूर्ण मन्त्र - साहित्य की चर्चा यहाँ नहीं करनी है । जैन संस्कृति का मूल मन्त्र है - 'महामन्त्र नवकार' । आचार्यो ने समय-समय पर इस महामन्त्र की बहुविध और विशाल व्याख्या की है । परन्तु हिन्दी भाषा में इस विषय पर कोई सुन्दर पुस्तक नहीं थी । कवि श्री जी ने उस अभाव की पूर्ति 'महामन्त्र नवकार' लिखकर की है । इस डेढ़ सौ पृष्ठों की पुस्तक में कविश्री जी ने मन्त्र - साहित्य का संक्षेप में सार निकाल कर रख दिया है ।
'महामन्त्र नवकार' का इसमें विस्तृत विवेचन तो है ही, किन्तु उसकी साधना के विभिन्न अंगों पर भी प्रकाश डाला है । माला कैसे फेरनी चाहिए, किस समय फेरनी चाहिए, यदि बातों पर बहुत स्पष्टता से विचार किया गया है । माला का महत्त्व बतलाते हुए कवि श्री जी साधकों को सावधान करते हैं-
“मन्त्र - सावना में माला का बड़ा भारी स्थान होते हुए भी बहुत से सज्जन इस सम्बन्ध में बड़े उदासीन होते हैं । केवल गिनती का साधारण-सा साधन समझ कर ही इसके प्रति लापरवाह नहीं होना चाहिए । माला की प्रतिष्ठा में ही मन्त्र की प्रतिष्ठा रही हुई है ।
माला सूत, मूंगा और चन्दन आदि किसी भी विशुद्ध प्रचित्त पदार्थ की ली जा सकती है । वहुत-से लोग सौन्दर्य की दृष्टि से रंगविरंगी माला बना लेते हैं, पर यह ठीक नहीं । माला जो भी हो, एक ही रंग की हो। यह भी ध्यान रहे कि एक चीज की माला में दूसरी चीज न लगाई जाए । माला के दाने छोटे-बड़े न हों । माला