________________
सर्वतोमुखी व्यक्तित्व
कवि जी ने अधिकांश अध्ययन अपनी प्रतिभा, मेधा, कल्पना और स्मृति के बल पर स्वतः ही किया है । अध्ययन के प्रति उनके श्रम और निष्ठा को देखकर आश्चर्य होता है । वे कभी निष्क्रिय होकर नहीं बैठते हैं । अध्ययन और लेखन उनके तपःपूत जीवन के मुख्य व्यसन हैं । अपने गम्भीर, गहन, दीर्घ और विपुल अध्ययन के कारण ही कवि जी बहुश्रुत वने हैं। आज भी नये से नये विषय को ग्रहण करने के लिए उनकी बुद्धि के द्वार खुले हुए हैं । अनेक ग्रन्थ आज भी उन्हें याद हैं, मुखाग्र हैं। किसी भी विषय की चर्चा छिड़ जाने पर वें उद्धरणों की झड़ी-सी लगा देते हैं । यह सब कुछ उनके गम्भीर अध्ययन का ही शुभ फल है । वे ज्ञान के अधिदेवता हैं ।
अध्यापन :
अध्ययन करने से भी कठिन काम है-अध्यापन | किसी भी ग्रन्थ के भावों को पहले स्वयं समझना और फिर दूसरों के दिमाग में उन भावों को वैठाना, वास्तव में बहुत कठिन काम है । अध्यापन के कार्य में वही व्यक्ति सफल एवं पारंगत हो सकता है, जिसके पास में प्रखर प्रतिभा हो, मुखर मेधा हो और प्रखर स्मृति हो । अध्यापन में केवल पुस्तकीय ज्ञान ही पर्याप्त नहीं होता - अनुभव, संवेदन और शैली भी बहुत आवश्यक है । यदि किसी के पास स्वयं का अनुभव नहीं है, तो वह व्यक्ति किसी भी भाँति अध्यापन में सफल नहीं हो सकेगा ।.
·
कवि जी के पास प्रतिभा, मेधा, स्मृति और कल्पना तो प्रचुर मात्रा में है ही, पर साथ में गहन अनुभव, गम्भीर संवेदन और मनोहर शैली भी है । कठिन से कठिन विषय को भी सरल से सरल बनाने की उनके पास अद्भुत क्षमता और योग्यता विद्यमान है । मानो, अध्यापन उनका सहज स्वभाव कर्म हो ! आप कुछ भी पढ़ें, सब विषय उनके लिए करस्थ एवं कण्ठस्थ हैं । परन्तु जितना रस और ग्रानन्द उन्हें आगम तथा दर्शन-शास्त्र पढ़ाने में आता है, उतना अन्य किसी विषय के अध्यापन में नहीं आता । वैसे वे व्याकरण जैसे नीरस एवं शुष्क विषय को भी सुन्दर शैली से पढ़ाते हैं । यथाप्रसंग वे अन्य ग्रन्थों के विषय का भी परिज्ञान करा देते हैं । उन्होंने जो कुछ भी पाया है, कुछ भी पढ़ा है, उसे देने को भी वे सदा तैयार
-
सीखा है और जो रहते हैं । अपना