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व्यक्तित्व और कृतित्व
अग्नि कृपा से चलता है सव, पाक आदि जग का व्यवहार । किन्तु उसी से क्षण-भर हा ! भस्म राशि होता घरवार ॥"
एक शिशु का परिचय - उस शिशु का, जो नव भारत की प्यारी सन्तान है, कवि इस प्रकार देता है-
"पूज्य भारत मातृ-भू की,
चाहती संतान हूँ मैं । राष्ट्र मंडल जाति, कुल की,
जागती जी-जान हूँ मैं । नव्य युग सर्जन करूंगा,
भूत-कण्ठ कृपाण हूँ मैं । क्रान्ति रण का अग्र योद्धा,
विश्व का कल्याण हूँ मैं ।"
दीपक, जो स्वयं जलकर भी विश्व को प्रकाशित करता है, वह भी ग्रमर कवि-काव्य - गंगा में स्थान पा गया है
दीपक ! तू सचमुच दीपक है,
अपनी देह जलाता है । तम परिपूर्ण नरक सम गृह को, क्षण में स्वर्ग बनाता है |
कवि अमर ने अपने 'विखरे फुल' नामक शीर्षक से अद्वितीय अतिशयोक्ति भी लिखी हैं, जिनमें से कुछ को यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है
"सज्जनों के शीप पर संकट रहेंगे कितने दिन, चन्द्र को घेरे हुए बादल रहेंगे कितने दिन ? "
आधुनिक कालिज वातावरण से अवगत होकर तथा वहाँ की क्रियाओं से परिचय प्राप्त करके कवि ने लिखा है
" कालिज में जा हिन्द की प्राचीन हिस्ट्री सीख लो, निज पूर्वजों के वृत की खिल्ली उड़ाना सीख लो ।