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व्यक्तित्व और कृतित्व .: "दुपहर का समय है । गुरुद्वारा में ठहरे हुए हैं। सिक्खों का नियम है कि नंगे सिर वालों को गुरुद्वारा के अन्दर, जहाँ गुरु ग्रन्थ-साहव विराजमान होते हैं, नहीं घुसने देते । परन्तु ग्रन्थी जी बड़े भावुक हृदय के मालिक हैं। हमें आज्ञा मिल गई है कि जहाँ चाहें अन्दर आराम कर. सकते हैं, सन्तों के लिए कोई रुकावट नहीं। गुरुद्वारा के अन्दर एक ऊँची-सी वेदी है, जिस पर एक छोटा-सा खटोला है, उस पर गुरु का शरीर यानी ग्रन्थ-साहब विराजमान हैं। गुरु ग्रन्थ-साहब को सिक्ख गुरु का शरीर कहते हैं। वैसे तो सिक्ख मूर्ति-पूजक नहीं हैं, किन्तु मूर्ति-पूजा के नाम से हिन्दू-धर्म में जो कुछ भी होता है, वह सव गुरु ग्रन्थ-साहव के प्रति किया जाता है। उसी तरह छत्र होता है, उसी तरह चंवर ढलता है, उसी तरह फूल चढ़ाए जाते हैं, उसी तरह सुबहशाम आगे कीर्तन होता है, अर्थात् सव कुछ वही होता है, फिर भी आदर्श है कि सिक्ख मूर्ति-पूजक नहीं हैं।"
. "शिमला जाने वाली सड़क के किनारे ही धर्मशाला में ठहरे हुए थे। रात भर आसनों पर करवटें बदलते रहे, जम कर नींद नहीं पाई। सड़क पर आती-जाती मोटरे विचित्र स्वर में चीखें जो मारती रहीं। शहरों के इन वैज्ञानिक भूतों ने पहाड़ों की शान्ति भी किस बुरी तरह भंग कर डाली है कि मनुष्य इतनी दूर आकर भी सुख की नींद 'नहीं हो सकता। भारत की अमीरी भूखों को दान देने से सिमटी, गरीव भाई-बन्धुओं की सहायता करने से सिमटी, देश की प्रौद्योगिक उन्नति करने से सिमंटी अर्थात् सव ओर से भलाई के क्षेत्र से सिमटसिमटाकर आज मोटर पर सवार हो गई है और शिमला जैसे स्थान पर आने-जाने में, शान्त वातावरण को अपनी चीत्कार तथा दुर्गन्ध से पित बनाने में, पैदल चलते राहगीरों को तंग करने में अपने वैभव का प्रदर्शन कर रही है।" - "माल रोड पर यौवन शाम के समय आता है, जब कि अंग्रेज युवतियां अर्ध-नग्न दशा में, बड़ी सज-धज के साथ, तितलियों की तरह फुदकती हुई सौदा खरीदनें आती हैं। आज इंगलैण्ड पर संकट की काली घटाएँ घुमड़ रही हैं, बीसवीं शताब्दी के रणचण्डी भक्त 'हिटलर का चारों ओर आतंक छाया हुआ है। एक के बाद एक–अनेक देशों