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व्यक्तित्व और कृतित्व को प्रदर्शित करना" ही कहानी की परिभाषा समझते हैं। श्यामसुन्दर दास के शब्दों में-"आख्यायिका एक निश्चय लक्ष्य या प्रभाव को लेकर जीवन पाख्यान है।" पश्चिमी कहानीकार 'एडगर एलिन पो' पाठक पर एक ही प्रभाव डालने वाली संक्षिप्त रचना को 'कहानी' कहते हैं । इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए इतना कहा जा सकता है कि-"कहानी जीवन के किसी एक अंग या मनोभाव को प्रदर्शित करने वाली संक्षिप्त स्वतः पूर्ण रचना है, जिसका लक्ष्य या प्रभाव एक ही होता है।"
कहानी के तत्त्व :
उपन्यास की भाँति कहानी के भी छह तत्त्व माने जाते हैं१. वस्तु, २ पात्र, ३. सम्बाद, ४. वातावरण, ५. शैली, और ६. उद्देश्य ।
कथावस्तु-कहानी में जीवन का चित्र नहीं, अपितु झलक होती है । अतः कहानीकार जीवन के एक ही विन्दु को केन्द्र बनाकर उसका अधिक गहराई तक निरीक्षण करता है। उसकी सीमा छोटी, किन्तु संवेदना तीव्र और सघन होती है। उपन्यास के समान उसके ऊपर विशाल महल नहीं बनाया जाता। इसमें वस्तु स्वयं ही कहानी का रूप बन जाती है। सारी कथा में एक-रूपता रहती है, जो अन्त में एक ही प्रभाव को उत्पन्न करती है। अतः अनावश्यक प्रसंग और विस्तार इसमें नहीं होता। संक्षेप में कहानी की सबसे बड़ी विशेषता है। कथावस्तु का । विश्लेषण करते हुए इसके पाँच अंग माने जाते हैं.-१. प्रारम्भ २. विकास, ३. कौतूहल, ४. चरम सीमा, और ५. समाप्ति । ''. १. प्रारम्भ कहानी का प्रारम्भ चाहे जैसे भी किया जाए, वह आकर्पक होना चाहिए। प्रथम पंक्ति में ही पाठक के मन को आकृष्ट करने के साथ आने वाले वातावरण की धुंधली झलक भी दीख जानी चाहिए।
२. विकास-विकास की अवस्था में कहानीकार पात्रों के चरित्र पर प्रकाश डालकर उनके क्रिया-कलापों द्वारा एक ठोस आधार तैयार करता है, जो पाठक के मन में कौतूहल जगाने में सहायक सिद्ध होता है।