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सम्पादन-कला सम्पादन-कला आज के युग की एक विशेष देन है। एक नया ग्रन्थ लिखने की अपेक्षा किसी प्राचीन ग्रन्थ का सम्पादन और संशोधन वड़ा ही महत्त्वपूर्ण होता है। स्वतंत्र ग्रन्थ लिखने में लेखक को अपनी कल्पना को इधर-उधर मोड़ने के लिए पर्याप्त अवसर रहते हैं। परन्तु सम्पादन में सम्पादक को मूल लेखक के विचारों का संरक्षण करते हए उसकी कृति में सौन्दर्य और सुषुमा लाने का प्रयत्न करना पड़ता है, जो एक बहुत कठिन काम है। इस अपेक्षा से यह कहा जा सकता है कि सम्पादन का. कार्य लेखन के कार्य से गुरुतर और महान् है । आज के युग में सम्पादन-कला का बहुत महत्त्व है।
__ कवि श्री जी सम्पादन-कला में परम निष्णात व्यक्ति हैं। उन्होंने अपने साहित्य-सेवा काल में अनेक ग्रन्थों का सम्पादन किया है। जिन लेखकों के ग्रन्थों का आपने सम्पादन किया है, वह सम्पादन मूल-ग्रन्थ से सुन्दर और शानदार रहा है। यही कारण है कि उन सम्पादनों को देखकर चारों ओर से आपके पास पुस्तकें आने लगीं। परन्तु आपने उस कार्य को लेने से इसलिए इन्कार किया कि आपके पास अध्ययन
और सेवा के अतिरिक्त वहत कम समय वचता था। फिर भी जिन चन्द ग्रन्थों का आपने सम्पादन और संशोधन किया है, आज भी वे आपकी योग्यता तथा पाण्डित्य के सुन्दर प्रतीक हैं, और सम्पादन-कला के आदर्श भी हैं।
दशवकालिक-सुत्र-आपने सबसे पहला सम्पादन आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज द्वारा लिखित 'दशवकालिक सूत्र' का किया है।