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अनुवाद
अनुवाद भी लेखन की एक कला है। किसी भी लेखक के भावों का भाषान्तर करना बहुत कठिन काम है। जव तक अनुवादक योग्य, विद्वान् और भाषा का पण्डित न हो, तव तक वह अनुवाद-कला में सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। कवि श्री जी अनुवाद-कला में परम निष्णात व्यक्ति हैं। आपने संस्कृत से हिन्दी में और प्राकृत से हिन्दी में अनुवाद किया है। अनुवाद करते समय कविश्री जी इस बात का पूरा ध्यान रखते हैं कि कोई भाव और कोई शब्द छुट न पाए । अनुवाद की भापा भी आपकी सरल, सुवोध और प्राञ्जल होती है।
कविश्री जी ने गद्य और पद्य दोनों प्रकार के अनुवाद किए हैं। प्राकृत की 'वीर स्तुति' का और संस्कृत के 'महावीराष्टक स्तोत्र' का . आपने गद्य के साथ-साथ पद्यमय अनुवाद भी किया है। पद्यमय अनुवाद बहुत ही सरस और सुन्दर है। इसके अतिरिक्त बहुत से अन्य संस्कृत श्लोकों का भी कवि श्री जी समय-समय पर पद्यमय अनुवाद करते रहे हैं। उनमें से कुछ संस्कृत श्लोक, जिनका कवि श्री जी ने पद्यमय अनुवाद किया है, उन्हें मैं यहां उपस्थित कर रहा हूँ
मंगलं भगवान् वीरो,
मंगलं गौतमो गणी । मंगलं स्थूल-भद्रार्यो,
जैन धर्मोऽस्तु मंगलम् ॥ मंगलमय भगवान् वीरप्रभु, मंगलमय गौतम गणवर । मंगलमय श्री स्थूलभद्र मुनि, जैन-धर्म हो मंगल वर ।।