________________
बहुमुखी कृतित्व
सर्व --- मंगल - मांगल्यं, सर्व-- कल्याण-कारणम् ।
प्रधानं सर्व धर्मानां, जैनं जयतु शासनम् ॥
अखिल मंगलों में वर- मंगल, विश्व शान्ति का मूल विशाल । सव धर्मों में धर्म श्रेष्ठत्तर, जय जिनशासन जग - प्रतिपाल || शिव मस्तु सर्व-जगतः,
परहित - निरताः भवन्तु भूतगणाः । दोषाः प्रयान्तु नाशं,
सर्वत्र सुखी भवतु लोकः ॥
अखिल जगत में शिव हो, सुख हो, परहित रत हों जीव सकल । दोप, पाप, अपराध नष्ट हों, सुख पावें सव जन अविचल ॥
१८३
जिस प्रकार कवि श्री जी ने संस्कृत श्लोकों का पद्यमय अनुवाद किया है, उसी प्रकार प्राकृत भाषा के सम्पूर्ण सामायिक सूत्र का पद्यमय हिन्दी अनुवाद भी किया है—
एसो पंच नमुक्कारो,
सव्व-- पाव --प्पणासणो । मंगलाणं च सव्वेसिं,
पढमं हवइ मंगलं ॥
पाँच पदों को नमस्कार यह, नष्ट करे कलिमल भारी । मंगलमय अखिल मगल में, पाप-भीरु जनता तारी ॥
कवि श्री जी ने गद्यमय अनुवाद तो वहुत ही अधिक किया है । 'महावीर वाणी' जो पंडित बेचरदास जी के नाम से प्रकाशित हुई है, उसका हिन्दी अनुवाद भी आपने ही किया है । 'सामायिक सूत्र' और 'श्रमण-सूत्र' का हिन्दी अनुवाद तो आपका समाज में खूब प्रचलित और प्रसिद्ध है । 'महावीरः सिद्धान्त ग्रौर उपदेश' गत मूलगाथाओं का गद्यमय हिन्दी अनुवाद बहुत ही सुन्दर हुआ है । अनुवाद मात्र को पढ़ने से ही मूल जैसा ग्रानन्द या जाता है । मैं यहां पर पाठकों की जानकारी के लिए गद्यमय अनुवाद के कुछ उद्धरण प्रस्तुत कर रहा हूँ