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शिक्षण - साहित्य
जीवन विकास के लिए शिक्षण एक परम श्रावश्यक तत्त्व है । शिक्षा के विना जीवन का विकास सम्भव नहीं है । शिक्षण से बौद्धिक और मानसिक विकास होता है । कवि श्री जी ने शिक्षा के क्षेत्र में भी अपना एक नया दृष्टिकोण दिया है । शिक्षा के क्षेत्र में उनके द्वारा लिखी गई — जैनवाल - शिक्षा, भाग – १, २, ३, ४ वहु प्रचलित हैं । पाठशालानों में उनके द्वारा लिखी हुई ये पुस्तकें ही पढ़ाई जाती हैं । उत्तर-प्रदेश, राजस्थान, मालवा और मेवाड़ में इन पुस्तकों ने अच्छा आदर पाया है । कवि श्री जी ने अपनी उक्त पुस्तकों में धर्म, दर्शन और संस्कृति के गंभीर से गंभीर भावों को बहुत ही सरल भाषा प्रकट किया है ।
प्रथम भाग — इसमें पन्दरह पाठ हैं । इसमें जीवन - सम्वन्धी मुख्यमुख्य वातों को तो बहुत ही सरल रूप में प्रस्तुत किया है । जैन कौन है ? इसके उत्तर में इस प्रकार लिखा है
" जैन वह है, जो मन के विकारों को जीतने की कोशिश करता है, जो सदा भले काम करता है ।"
जैन को क्या करना चाहिए ? इसके उत्तर में इस प्रकार लिखा है
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१.
२.
३.
दोनों काल सामायिक करना ।
नवकार मंत्र का जाप करना । माता-पिता का श्रादर करना ।