Book Title: Amarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 186
________________ १७८ व्यक्तित्व और कृतित्व हैं, और ये ही वीतराग परिणति के द्वारा कर्म-बन्धनों से सदा के लिए मुक्ति भी प्रदान करते हैं।" ___ "आलोचना का भाव अतीव गम्भीर है। निशीथ चूर्णिकार जिनदास गणि कहते हैं कि-"जिस प्रकार अपनी भूलों को, अपनी बुराइयों को तुम स्वयं स्पष्टता के साथ जानते हो, उसी प्रकार स्पष्टता पूर्वक कुछ भी न छिपाते हुए गुरुदेव के समक्ष ज्यों-का-त्यों प्रकट कर देना 'आलोचना' है।" यह आलोचना करना, मान-अपमान की दुनिया में घूमने वाले साधारण मानव का काम नहीं है। जो साधक दृढ़ होगा, वही आलोचना के इस दुर्गम पथ पर अग्रसर हो सकता है।" "निन्दा का अर्थ है-आत्म-साक्षी से अपने मन में अपने पापों की निन्दा करना । गहरे का अर्थ है--पर की साक्षी से अपने पापों की बुराई करना । जुगुप्सा का अर्थ है- पापों के प्रति पूर्ण घृणा-भाव व्यक्त करना । जव तक पापाचार के प्रति घृणा न हो, तब तक मनप्य उससे वच नहीं सकता। पापाचार के प्रति उत्कट घृणा रखना ही पापों से वचने का एकमात्र अस्खलित मार्ग है। अतः पालोचना, निन्दा, गर्दा और जुगुप्सा के द्वारा किया जाने वाला प्रतिक्रमण ही सच्चा प्रतिक्रमण है।" - - -

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