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बहुमुखी कृतित्व
१५७ तत्त्व आ जाते हैं। वस्तु, पात्र, संवाद, शैली और उद्देश्य-ये कहानीकला के मुख्य तत्त्व हैं। कवि श्री जी की कहानी-कला में उक्त तत्त्व बहुत ही सुन्दर रूप में अभिव्यक्त होते हैं। उनकी भाषा, भाव-भंगिमा
और शैली तथा कथोपकथन अपने ढंग के निराले होते हैं। जब वे किसी कहानी को लिखने बैठते हैं, तो उस कहानी के फल एवं परिणाम के सम्बन्ध में पाठकों के सम्मुख अपना एक निश्चित दृष्टिकोण उपस्थित करते हैं । उनकी कथावस्तु ऐतिहासिक, पौराणिक, या किसी महापुरुष के जीवन की घटना-विशेष होती है। उनकी कहानियों के पात्र सभ्य, सुसंस्कृत और मितभाषी होते हैं। उनकी कहानियों के संवादों में तर्कवितर्क मिलता है, परन्तु शैली की मधुरता के कारण से पाठक को बोझिलसा नहीं लगता। उनकी कहानी का अन्तिम उद्देश्य होता है-नैतिक जीवन, सांस्कृतिक अभ्युत्थान और पाप का प्रायश्चित तथा त्याग एवं वैराग्य । उनकी कहानी का प्रारम्भ जैसा मधूर होता है, उससे भी बढ़कर उसका अन्त अधिक मधुर होता है। पाठक उनकी कहानी को पढ़ते समय किसी प्रकार की परेशानी का अनुभव नहीं करता, बल्कि उनके विचार-प्रवाह में बहता हुआ सुखानुभूति करता है। मैं यहाँ पर कवि श्री जी की कहानी-कला के कुछ नमूने पाठकों के समक्ष उद्धृत कर रहा हूँ, जिससे कि पाठक उनकी कहानी-कला को समझ सकें
"चोर वापिस जा रहा था कि संयोग वश फिर राजा और मन्त्री से उसका सामना हो गया। राजा ने मंत्री से कहा-"पूछे तो सही कि कौन है ?' मंत्री बोला-"पूछ कर क्या कीजिएगा? यह तो वही सेठ है जो पहले मिला था और जिसने चोर के रूप में अपना परिचय दिया था!"
मगर जब वह सामने ही आ गया तो राजा के मन में कौतूहल जागा और उससे फिर पूछा-'कौन ?'
__चोर-'एक वार तो बतला चुका कि मैं चोर है। अव क्या बतलाना शेष रह गया ?'
राजा-'कहाँ गए थे ?' चोर-चोरी करने ।' राजा-'किसके यहाँ गए ?'