Book Title: Amarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 164
________________ १५६ व्यक्तित्व और कृतित्व संवाद- कहानी को चरम सीमा की ओर ले जाने और उसमें कौतूहल पैदा करने के लिए 'संवाद' की आवश्यकता रहती है। संघर्ष या अन्तर्दू न्द्र की सृष्टि भी संवादों के द्वारा ही सफलता पूर्वक की जाती है। इसके अतिरिक्त पात्रों के चरित्र-चित्रण का काम भी संवादों के द्वारा लिया जाता है। कहानी के संवाद थोड़े, छोटे और सरस होने चाहिए। वातावरण-कहानी में 'वातावरण' का अधिक प्रयोग नहीं हो सकता । लेखक को संक्षेप के कारण प्रकृति की शोभा दिखलाने अथवा जीवन की विस्तृत झाँकी उपस्थित करने का अवकाश नहीं होता। वीच-बीच में पात्रों के मनोभावों को उत्तेजित करने के लिए प्रकृति के हल्के दृश्य अवश्य रख दिए जाते हैं। कहीं-कहीं प्रारम्भ में और कहींकहीं अन्त में भी वातावरण का शब्द-चित्र देकर लेखक संवेदना की मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति करता है। शैली-कहानीकार की कृति में उसके व्यक्तित्व की छाप भी रहती है । लेखक कथावस्तु को एक प्रकार की एकता की ओर अग्रसर करने ने लिए भापा और कल्पना का सुन्दर ताना-बाना तैयार करता हैं। एक सफल कहानी लेखक कहानी के सभी तत्त्वों में 'औचित्य' स्थापित करता है । लेखक में वर्णन-शक्ति के साथ-साथ विवरण-शक्ति का होना भी आवश्यक होता है। क्योंकि पश्चिमी विद्वानों के मतानुसार कहानी एक प्रकार का विवरण-मात्र ही है । उद्देश्य-कहानी का उद्देश्य मानव-मन की उदात्त भावनाओं को जगाना, उन्हें रस-मग्न करना है। केवल मनोरंजन या उपदेश देना कहानी का लक्ष्य नहीं है । यदि ऐसा होता तो 'पंचतन्त्र' की नीति-प्रधान कथाएं और 'कथा-सरित्सागर' की मनोरंजक कथाएँ भी उत्कृष्ट कला के नमूने कही जातीं। भारतीय साहित्य-शास्त्री 'रस' को ही काव्य की आत्मा स्वीकार करते हैं। इस दशा में व्यक्ति का 'अहं', 'सर्व' का रूप धारण कर लेता है। पाश्चात्य विद्वान इसी अवस्था को 'अहं से मुक्ति' और 'कल्पना से क्रीडा' कहते हैं । कवि श्री जी ने बहुत बड़ी संख्या में कहानियां नहीं लिखी हैं। किन्तु जो भी कहानियाँ उन्होंने लिखी हैं, उनमें कहानी-कला के समस्त

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