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जीवनी
जीवनी भी गद्य का एक सुन्दर रूप होता है। इसमें किसी व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन का यथार्थ चित्र उपस्थित किया जाता है। जीवन-नायक के जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं का भी लेखक को ध्यान रखना चाहिए। किन्तु उसकी समस्त दिनचर्या का ब्यौरा देना जीवनी में आवश्यक नहीं होता। जोवनी-लेखक को अपने नायक के विचारों और दृष्टिकोणों को निष्पक्ष रूप से और निकट से. जानने का प्रयत्न कर लेना चाहिए। उसके जीवन-दर्शन को विना पूर्ण समझे लेखक उसके साथ अन्याय कर बैठेगा। उसे लेखक के न तो इतना समीप होना चाहिए कि उसके साथ तादात्म्य स्थापित हो जाए, क्योंकि ऐसा करने से लेखक उस व्यक्ति की प्रशंसा के पुल बाँध देगा, और न ही उसे इतना दूर रहना चाहिए कि उसका व्यक्तित्व नजर ही न पा सके।
जीवनी-लेखक सदा एक प्रहरी के समान ही तटस्थ निरीक्षक होता है । अपने नायक के सम्बन्ध में वह जितना भी जान सकता है या जानता है, उसे निष्कपट 'रूप से, यथार्थ रूप से प्रकट कर देना ही उसका काम है। व्यक्ति गुण-दोष का भंडार होता है। अतः जीवनीलेखक को जहाँ अपने नायक के गुणों का वर्णन सच्चाई से करना चाहिए, वहाँ उसके दोषों को सहानुभूतिपूर्ण ढंग से उपस्थित करना चाहिए । व्यक्तिगत रांग-द्वष से उसे सदैव ऊपर उठकर ही जीवनी लिखनी चाहिए।