________________
व्याख्या-साहित्य
: कवि श्री जी ने प्राचीन आगमों पर व्याख्या एवं भाष्य भी लिखे हैं | इस सम्बन्ध में उनकी दो कृतियाँ सुप्रसिद्ध हैं-'सामायिकसूत्र' और 'श्रमण-सूत्र' । हिन्दी साहित्य में इतनी विशद व्याख्या के साथ जैन समाज में अन्य किसी लेखक की कोई पुस्तक नहीं है ।. .
. 'सामायिक-सूत्र'. जैन-साधना का एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। .. कविश्री जी ने प्राकृत के मूल-पाठों पर हिन्दी में भाष्य लिखा है। 'सामायिक-सूत्र में मूल-पाठ, जो कि प्राकृत में (अर्द्ध मागधी भाषा में) है, 'संख्या में केवल ग्यारह ही हैं। किन्तु कविश्री जी ने जो इस पर भाष्य लिखा है, उसकी पृष्ठ संख्या तीन-सौ सत्तर है। मूल-पाठों पर विस्तार के साथ व्याख्या लिखी गई है। मूल-पाठ के वाद में शब्दार्थ, -फिर भावार्थ, इसके बाद में विस्तृत व्याख्या। प्रत्येक पाठ का यह क्रम है । सामायिक-सूत्र के रहस्य को समझने के लिए कविश्री जी ने प्रारम्भ में उस पर विस्तृत भूमिका भी लिखी है। यह भूमिका ‘एक-सौ पैंतालीस' पेज की है। सामायिक के प्रत्येक पहलू पर इसमें विस्तार के साथ विचार-चर्चा की गई है।
'श्रमण-सूत्र' भी सामायिक-सूत्र की तरह जैन-साधना से सम्बन्धित एक विशालकाय ग्रन्थ है । 'प्रतिक्रमण' जैन-साधना का एक अति आवश्यक अंग हैं। प्रतिक्रमण-सूत्र के मूल-पाठों पर कवि श्री जी ने आलोचनात्मक एवं गवेषणात्मक जो व्याख्या की है, उसी का नाम यहाँ पर 'श्रमण-सूत्र' है । इसकी पृष्ठ संख्या चार-सौ अड़तालीस है। 'आवश्यक दिग्दर्शन' यह पुस्तक की विस्तृत भूमिका है, जिसमें 'षट्