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बहुमुखी कृतित्व
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वस, ढिढोरा पिटवा दिया गया - ' जिसने रात्रि में, खजाने में चोरी की हो, वह राजा के दरबार में हाजिर हो जाए ।'
लोगों ने ढिढोरा सुना तो वतियाने लगे-- ' राजा पागल तो नहीं हो गया है ? कहीं इस तरह भी चोर पकड़े गए हैं ? चोर राजदरवार में स्वयं ग्राकर कैसे कहेगा कि मैंने खजाने में चोरी की है । वाह री बुद्धिमत्ता !"
- ( कथोपकथन )
" एक राजकुमार घोड़े पर सवार होकर, अस्त्र-शस्त्र से लैस और लाखों की कीमत के अपने ग्राभूषण पहन कर सैर करने को चला । आगे बढ़ा तो देखा कि गाँव के बाहर मन्दिर है और वहाँ भीड़ लगी है । वह उसी ओर गया और पास पहुँच कर, घोड़े को पानी पिलाकर पास ही एक वृक्ष से बाँध दिया। खुद भी पानी पीकर छाया में सुस्ताने लगा । उसने देखा कि सामने भीड़ में एक उपदेशक व्याख्यान दे रहे थे । उन्होंने कहा—‘संसार, क्षणभंगुर है । यह जवानी फूलों का रंग है, जो चार दिन चमकने के लिए है । और यह जीवन ग्रात्म-कल्याण करने के लिए मिला है । यह शरीर क्या है? लाश है ! मिट्टी है ! हड्डियों का ढांचा है । इससे खेती की, तो मोतियों की खेती होगी, नहीं तो यह लाश सड़ने के लिए है !"
- ( प्रारम्भ )
"मौर्य सम्राट् चन्द्रगुप्त भारतवर्ष के वड़े ही प्रभावशाली सम्राट् हुए हैं । भारतवर्ष का गौरव, इनके राज्य में बहुत ऊँचाई पर पहुँचा हुआ था । इनके राज्य की सीमा काबुल कंधार तक फैली हुई थी । ये पाटलीपुत्र ( पटना ) के राजा थे। इन्होंने यूनान देश के सम्राट् सैल्यूकस को युद्ध में पराजित किया था और सैल्यूकस की पुत्री हेलन के साथ विवाह किया था ।"
- ( आरम्भ )
"सोने का सिंहासन बहुत बुरा है । इस पर बैठ कर अच्छे-अच्छे देवता भी राक्षस हो जाते हैं । वनवीर कुछ दिन तो न्याय-नीति से 'राज-काज करता रहा, परन्तु ग्रागे चलकर उसके हृदय में स्वार्थ का भूत हुड़दंग मचाने लगा । 'मैं ही क्यों न सदा के लिए राजा बन जाऊँ ?"