________________
यात्रा-वर्णन
यात्रा-वर्णन भी साहित्य का एक प्रमुख अंग है। यात्रा-वर्णन में लेखक को बहुत ही सतर्क और सावधान रहना पड़ता है। वह जो कुछ देखता है और जो कुछ सुनता है, उसे अपनी अनुभूति की तुला पर तोल कर लिखना पड़ता है। यात्री जव सुदूर देशों में जाता है, तो वह वहाँ पर वहां के लोगों की सभ्यता और संस्कृति के परिचय में आता है। एक यात्री जव दूसरे देश में जाता है, तव यह आवश्यक हो जाता है कि वह वहाँ के लोगों के शील और स्वभाव को भी जाने । यात्रा-वर्णन एक जीती-जागती कहानी होती है। प्राचीन भारत में जो विदेशी लोग भारत में आए थे, उन्होंने जो भारत का वर्णन किया है, वह वर्णन आज हमारे लिए एक इतिहास बन गया है। इन सव दृष्टियों से यह कहा जा सकता है कि यात्रा-वर्णन साहित्य का एक मुख्य अंग है।
___कवि श्री जी ने अपनी साहित्य-रचनाओं में यात्रा-वर्णन को भी स्थान दिया है । सन्त घुमक्कड़ होता है । वह प्रायः घूमता ही रहता है। कवि श्री जी ने भी अपने जीवन में लम्बी-लम्बी यात्राएं की है। उनकी शिमला-यात्रा के कुछ संस्मरण, जो स्वयं उन्होंने अपनी कलम से लिखे हैं, उनके कुछ अंश यहाँ दे रहा हूँ
"प्रतिक्रमण से निवट चुके हैं। दीवान भगतराम जी तथा कुछ अन्य सज्जनों से वर्तालाप हो रहा है। दीवान भगतराम जी पंजाव के एक अच्छे प्रसिद्धि-प्राम इंजीनियर हैं । आप फैक्टरी में प्रारम्भ से ही एक ऊंचे पद पर काम कर रहे हैं। हां, तो आपका प्रश्न हो रहा है कि-'जन-धर्म में परमात्मा का क्या स्थान है ?' मैंने कहा-'जैन-धर्म