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व्यक्तित्व और कृतित्व शान्ति का वातावरण खासा अच्छा है। गिरजा में एक वाद्य है, जिसका नाम ओरगन है। सौ रुपए मासिक पर एक अंग्रेज महिला वाद्य बजाने के लिए नियत है। यह वाद्य हाथ से नहीं, विजली से वजाया जाता है। रविवार के साप्ताहिक सत्संग में जव यह ओरगन बजता है, तो तीन हजार स्वरों का यह भीमकाय वाद्य, अपने सुमधुर गंभीर घोप से आकाश-पाताल एक कर देता है। गिरजा में बैठने वालों के लिए अच्छी व्यवस्था है। प्रत्येक बैंच वरावर है, न कोई ऊंचा, और न कोई नीचा । वाइसराय और कमाण्डर-इन-चीफ की सीटें सबसे आगे हैं, किन्तु वे भी औरों के वरावर ही हैं, ऊँची नहीं। यह भी नियम नहीं है कि इन पर वाइसराय और कमाण्डर-इन-चीफ के अतिरिक्त दूसरा कोई बैठ ही नहीं सकता। जव वाइसराय और कमाण्डर इन-चीफ उपस्थित नहीं होते हैं, तव दूसरे साधारण सज्जन भी आकर इन सीटों पर बैठ जाते है। प्रस्तुत नियम से मेरा भावुक हृदय अधिक प्रभावित हुआ। धर्म-स्थानों में भी अपने अहंत्व पर लड़ने-झगड़ने वाले भारतीय सज्जन-जरा इस ओर लक्ष्य दें।"