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गद्य-गीत
भावना सापेक्ष गद्य-काव्य के अन्तर्गत गद्य-गीत और शब्द-चित्र की गणना की जाती है। गद्य-गीत, वास्तव में गद्य और पद्य के वीच की वस्तु है। स्वयं 'गद्य-गीत' शब्द में ही गद्य और पद्य का समन्वय किया गया है । निवन्ध के निकट होकर भी गद्य-गीत उससे सर्वथा भिन्न है। क्योंकि गद्य-गीत में एक ही भाव की तीव्रता रहती है । आकार में यह छोटा होता है। कवि जब अपने हृदय की किसी कोमल वृत्ति को कविता या छन्द में व्यक्त नहीं कर पाता, तब वह गद्य-गीत लिखता है, जिससे इसमें पद्य की भाव-प्रधानता और संगीतात्मकता गद्य के स्वच्छन्द प्रवाह से मिल जाती है। कविता में छन्द का नियम रहता है, किन्तु गद्य-गीत में वह नियमित नहीं रहता। पद्य-गीतकार अपनी व्यक्तिगत सुख-दुःखात्मक अनुभूतियों को प्रकट करता है। किन्तु एक गद्य-गीत में एक ही भाव या संवेदना होती है। उसका भावावेग तीव्र होता है, भापा सरस, मधुर और संगीतमय रहती है। गद्य-गीत में गीतकार अपने भावों को सुन्दर भाषा औरं मनोहर शैली में अभिव्यक्त करता है।
कवि श्री जी ने गद्य-गीत भी लिखे हैं। उनके गद्य-गीतों की भाषा मधुर, शैली सुन्दर और भावाभिव्यक्ति मनोहर होती है । गद्यगीत लिखते समय वे बहुत ही भावना-शील और कल्पना-शील हो जाते हैं । उनकी भावुकता और कल्पनाशीलता उनके गद्य-गीतों में बहुत ही सुन्दर रूप में प्रस्फुटित होती है । समय-समय पर उनके गद्य-गीत सामाजिक, साप्ताहिक और मासिक पत्रों में प्रकाशित होते रहे हैं।