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व्यक्तित्व और कृतित्व परन्तु उनके कुछ गद्य-गीत ऐसे भी हैं जो अभी तक प्रकाश में नहीं आ सके हैं । समय आने पर मैं उन गद्य-गीतों का स्वतंत्र रूप में प्रकाशन का प्रयत्न करूंगा। कवि श्री जी के गद्य-गीतों का विषय-धर्म, दर्शन, संस्कृति, समाज अथवा किसी महापुरुष के जीवन की घटना-विशेष होता है । मैं यहां पर उनके कुछ गद्य-गीतों के उद्धरण दे रहा हूँ--
"आफतों की विजलियाँ अविराम-गति गिरती रहें ! खंडशः तनु हो, तथा निज रक्त की धारा बहें! भय-भ्रान्त होकर, लक्ष्य से, तिल मात्र हट सकता नहीं ! उत्साह का दुर्दम्य तेजः पुञ्ज, घट सकता नहीं। मैं चढ़ रहा हूँ, नित्य विमलाचरण के सोपान पर, पा रहा हूँ, नित्य जय आसक्ति के तूफान पर! बुद्ध जिन वर, और हरि हर, गौड, पैगम्वर, वुदा, वस्तुतः मुझ में, सभी हैं, है न, कोई भी जुदा !"
"हे श्रमण-संस्कृति के अमर देवता! तू वीर था, महावीर था !