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व्यक्तित्व और कृतित्व "जयपुर राज्य का एक छोटा-सा अजेन गाँव है । सम्भव है, जब से यह वसा हो, तब से यहाँ की भूमि को किसी जैन साधु के चरण-स्पर्श का सौभाग्य न मिला हो। हम लोग अजमेर से आते हुए, विहार-यात्रा को छोटी करने के उद्देश्य से इधर आ गए हैं और भिक्षा के लिए घरघर अलख जगा रहे हैं।
. परन्तु यहाँ भिक्षा कहाँ ? गाँव वहुत गरीब मालूम होता है। क्या मकान, क्या कपड़े, क्या भोजन और क्या मनुष्य-सव पर दरिद्रता की मुद्रा स्पष्टतः उभरी हुई दिखाई देती है। जहाँ भी पहुँचते हैं, एकमात्र नकार में ही उतर मिलता है और वह भी तिरस्कार, वृणा एवं अभद्रता से सना !"
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. : "वड़ी शानदार वम्बई-नुमा हवेली है.। आर्थिक शक्ति का खासा अच्छा दुरुपयोग किया है। सेठ जी नहीं मिले, हम ऊपरं आहार लेने चढ़े । एक मंजिल से दूसरी मंजिल, और दूसरी से तीसरी । मैंने साथी से हंसते हुए कहा-'चढ़े चलो, तुम्हें तो जीते जी ही स्वर्ग-यात्रा करनी पड़ गई। पता नहीं, इस स्वर्ग में तुम्हें कुछ मिलेगा भी या नहीं?' : .. क्यों न मिलेगा?' -;..
'स्वर्ग जो ठहरा!' ... ... 'स्वर्ग में तो सब कुछ मिलना चाहिए ?' . - . 'स्वर्ग में और सब कुछ भले ही मिल सके, पर रोटी नहीं । मिलती। रोटी तो मानव-लोक का ही आविष्कार है।" - . x. x
x . . ., "क्या मिला और क्या न मिला, यह प्रश्न नहीं है। प्रश्न है, देने की भावना का। मेरा साथी वड़ा घर सुनकर आया था। परन्तु मैं विचार करता रहा-क्या यही वड़ा घर है ? यदि यही वड़ा घर है, तो छोटे घर की क्या परिभाषा होगी? सोने के कंगनों से हरदम दमकते रहने वाले हाथ ! और फिर इतने दरिद्र! इतने कंगाल! सदा और · सर्वत्र श्रद्धा की दृष्टि से देखे जाने वाले साधु के सामने आकर भी जव आधी रोटी वापस लौट गई है, · तव फिर किसी गरीव गृहस्थ की इस स्वर्ण-द्वार-पर क्या दशा होती होगी?" ..