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व्यक्तित्व और कृतित्व जाता, वल्कि वह अागे वढ़कर कहता है कि विचार भी जीवन में किसी प्रकार का परिवर्तन न ला सकेंगे। भारतीय संस्कृति की एकमात्र यही विगेपता है कि आदर्श को केवल आदर्श मानकर ही बैठ नहीं जाती, वल्कि उसे जीवन में उतारने की पद्धति भी बतलाती है।"
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"पहाड़ की गहरी कन्दरा में गुलाब का एक फूल खिला हुआ था। मैंने पूछा-'तू यहाँ किस लिए खिला हुआ है, जब कि न कोई देखता है, न सुगन्ध लेता है। आखिर, यहाँ पर तुम्हारा क्या उपयोग है ?' उसने उत्तर दिया-'मैं इसलिए नही खिलता कि कोई मुझे देखे या सुगन्ध ले! यह तो मेरा स्वभाव है। कोई देखे या न देखे, मैं तो खिलूगा ही।"
मैंने मन में सोचा-"क्या मानव भी निष्काम कर्म-योग का यह पाठ सीख सकेगा ?" - "लोग कहते हैं कि राम ने रावण को मारा। परन्तु क्या यह सच है ? रावण को मारने वाला स्वयं रावण ही था, दूसरा कोई नहीं। मनुष्य का उद्धार एवं संहार, उसका अपना भला-बुरा आचरण ही करता है-यह एक अमर सत्य है। इसे हमें समझना चाहिए । अरे मनुष्य ! तू अपने शत्रु को अपने अन्दर ही क्यों नहीं देखता ?" _ "वीरता और कायरता में क्या भेद है ? जहां वीर का कदम आगे की ओर बढ़ता है, वहां कायर का कदम पीछे की ओर पड़ता है। वीर रण-क्षेत्र में अपने पीछे अादर्श छोड़ जाता है और मर कर भी अमर हो जाता है । लेकिन कायर मैदान से मुह मोड़ कर भाग खड़ा होता है और कुत्ते की मौत मरता ।"