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व्यक्तित्व और कृतित्व
पुरुष का चित्रांकन जैन साहित्य के महाकवि द्वारा कैसा हुआ है - यह . कहने की बात नहीं है । इसमें से वास्तविक सार तो इसे अध्ययन-मनन करने से ही लिया जा सकता है ।'
'धर्मवीर सुदर्शन' के लिए प्रेरणा कवि श्री जी को सुहृदय मुनिवर श्री मदन जी ने दी। रिवाड़ी के समीप किसी गाँव में होली के उत्सव पर मुनिवर को गन्दे गीत, गन्दे गाली-गलौज, गन्दी चेष्टाएं, जो कुछ था - सब गन्दा ही गन्दा था, आदि देखने को मिले । कवि जी ने खुद लिखा है कि- " उत्सव के नाम पर सदाचार का हत्याकाण्ड हो रहा था ।" और इन्हीं भारतीय गाँवों की भोली और अनपढ़ जनता को समझाने-बुझाने के लिए कवि जी ने 'राधेश्याम रामायण' के ढंग पर इस चरित्र ग्रन्थ का रचना कार्य प्रारम्भ कर दिया । प्रारम्भ में कवियों की परंपरा के अनुसार कवि श्री जी ने भगवान् महावीर को अभिवादन किया है और फिर काव्य का शुभ मुहुर्त कर दिया है ।
मानव-मन का सार बताने हुए कवि ने सदाचार पथ को उत्तम आदर्श बताया है । सदाचार को कवि ने 'पतित पावनी गंगा की निर्मल धारा' कहा है । इसके विपरीत आचरण को कवि श्री जी ने "नर-चोले में राक्षस-सा धमाधम जीवन दिखलाया" बताया है । कवि जी के काव्य का आधार सदाचार है । और कवि ने पाठकों को सम्बोधन करके वहीं चलने को कहा है, जहाँ सदाचार की झलक मिले । इस तरह सेठ सुदर्शन की चम्पा नगरी के वर्णन में कवि ने मानो कलम तोड़ दी है तथा उनकी इस पंक्ति - "ग्रात्रो मित्रो, चलें जहाँ पर सदाचार की झलक मिले "में हिन्दी के राष्ट्रीय कवि मैथिलीशरण गुप्त की - " संप्रति साकेत समाज वहीं है सारा" की झलक मिल जाती है ।
धर्मवीर सुदर्शन का परिचय कवि जी ने इस प्रकार दिया है"उसी रत्न-नर माला में इक रत्न और जुड़ जाता है, वीर सुदर्शन सेठ अलौकिक अपनी चमक दिखाता है ।"
तथा
उसकी पत्नी को इस प्रकार सम्वोधन किया है"भाग्य योग से गृह-पत्नी भी थी मनोरमा शीलवती" सुदर्शन सेठ एक सफल नायक, विश्वासपात्र मित्र, पत्नी धर्म पालक पति थे और इसी कारण कामान्य ब्राह्मणी के सम्मुख उन्होंने बड़े