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बहुमुखी कृतित्व
१२६ हरिश्चन्द्र का चारित्रक 'क्लाइमेक्स' कफन-कर वसूल करने में हमारे सामने आता है-सेवक का कर्तव्य वह नहीं छोड़ सकता-उसे तो वह चरम सीमा तक पहुँचा कर ही रहेगा। हरिश्चद्र हरिश्चन्द्र है, और संसार-संसार । एक क्षण के लिए भी संसार यदि हरिश्चन्द्र का आदर्श अपनाले, तो उसका नारकी रूप-स्वर्ग-छटा में बदल जाए ।
____कवि श्री जी का 'सत्य हरिश्चन्द्र' काव्य आदि से अन्त तक मानवता का आदर्श एवं करुणा-उद्भावना उपस्थित करने वाला काव्य है। इसमें प्रोज है—प्रवाह है, और है-सुष्टु कल्पना । हम इसे अपनी विचारधारा में महाकाव्य ही कहेंगे-नियम-निपेध से दूर । हरिश्चन्द्र अपने में पूर्ण है, उसका चरित्र भी अपने में पूर्ण है-ऐसी अवस्था में यह हरिश्चन्द्र-काव्य, खण्ड-काव्य की श्रेणी में किसी भी तरह नहीं आता।
___ जान-बूझकर भाषा-शैली को दुरूह और अस्पष्ट बनाने की परिपाटी से कविश्री जी ने अपनी कविता को पृथक् रखा है। उनका उद्देश्य उनके सामने रहा है, और उनका उद्देश्य सर्व-साधारण में 'मानवीय व्यक्तित्व' (Human Personality) को प्रश्रय देना मुख्य है। हमें विश्वास है—'सत्य हरिश्चन्द्र' काव्य उनके उद्देश्य को आगे बढ़ाएगा।
-कुमुद विद्यालंकार