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बहुमुखी कृतित्व १. आलोचनात्मक २ विवेचनात्मक
३. गवेषणात्मक . पालोचनात्मक-गद्य के आलोचना और निबन्ध पृथक् रूप माने गए हैं, किन्तु विधान की दृष्टि से अधिकांश आलोचनात्मक लेख निवन्ध के अन्तर्गत आ जाते हैं। विचारात्मक निबन्धों से इनमें सरसता भी अधिक होती है, भले ही आलोचना का सिद्धान्त-पक्ष नीरस ही हो।
विवेचनात्मक-किसी एक विषय का वाहरी और भीतरी गंभीर विवेचन उनकी विशेपता होती है। इसमें लेखक के व्यक्तिगत विचार और मनन का पूर्ण प्रभाव पड़ता है । ____ गवेषणात्मक यह निवन्ध विशेष रूप से विद्वानों की वस्तु' होते हैं। इनमें गम्भीर अध्ययन और शोध-कार्य प्रधान होते हैं। धर्म, दर्शन, संस्कृति, इतिहास, समाज अथवा किसी प्राचीन ग्रन्थ पर तात्त्विक दृष्टि से और पारिभाषिक शब्दावली में युक्तिपूर्ण विवेचन किया जाता है।
कवि श्री जी की साहित्य-साधना का 'निबन्ध-कला' एक मुख्य अङ्ग है। उनके निवन्धों में निबन्ध-कला का पूर्ण विकास हुआ है। उनके निवन्ध भावात्मक और विचारात्मक-दोनों शैलियों में लिखे गए हैं। उनके निवन्धों मे कल्पना, अनुभूति, और तर्कपूर्ण व्यंग्य अपना प्रभाव पाठक के मन पर छोड़ते हैं। निवन्धों की शैली सरसा, और भापा सरल तथा हृदय की भावनाओं को अभिव्यक्त करने की कला अद्भुत्त है । इस दिशा में कवि श्री जी का शानी अभी तक कोई दूसरा व्यक्ति नहीं है। कवि श्री जी ने आलोचनात्मक, विवेचनात्मक और गवेषणात्मक निवन्ध भी काफी बड़ी संख्या में लिखे हैं। उनके निवन्धों का विषय है-धर्म, दर्शन, संस्कृति, समाज, साहित्य, इतिहास और जीवन । उसके निबन्धों की शैली कहीं पर व्यासात्मक है और कहीं पर समासात्मक । इस प्रकार विविध शैलियों में और विविध विषयों पर कवि श्री जी का निवन्ध-साहित्य आज भी उपलब्ध है। निबन्धों के विषय में उनकी कई पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है और कितनी ही पुस्तकें . अभी तक अप्रकाशित रूप में हैं।