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व्यक्तित्व और कृतित्व अटूट धारा बहती है। दूसरे प्रकार के निवन्धों में भापा की गति और भावों का प्रवाह एक-सा नहीं रहता। भावात्मक निवन्य तीन प्रकार के होते हैं
१. कल्पना-प्रधान २. अनुभूति-प्रधान ३. हास्य और व्यंग्य-प्रधान
कल्पना-प्रधान-इन निवन्धों में विषय का यथार्थ रूप लेखक की मधुर कल्पनाओं में ढंक जाता है। कभी-कभी लेखक सर्वथा नवीन शब्द चित्रों की भी सृष्टि करता है। शब्द-माधुर्य, अलंकृत-शैली और मनोहर कल्पनाएं इनकी विगेपताएं हैं। . .
अनुभूति-प्रधान---इन निवन्धों में लेखक अनुपम कल्पना नहीं करता, अपितु विषय को हृदयंगम करके उसे कोमल अनुभूतियों के रङ्ग में रङ्ग देता है। किसी समय देखी अथवा सुनी हुई वस्तु को दोवारा सम्पर्क में आने पर लेखक का भावपूर्ण हृदय उमड़ कर बाहर फूट पड़ता है।
हास्य और व्यंग्य-प्रधान-इन निवन्धों में हल्की-सी भावानुभूति और मधुर कल्पना भी रहती है, पर उसकी अभिव्यक्ति हास्य और व्यंग्य के मिश्रण से की जाती है। मनोरंजन के साथ-साथ इस प्रकार के निवन्ध सामाजिक कुरीतियों पर कभी-कभी कड़ी चोट भी कर जाते हैं। विचारात्मक निबन्ध :
शैली की दृष्टि से विचारात्मक निबन्ध दो प्रकार के होते हैं१. समास-शैली के निवन्ध, और २. व्यास-शैली के निवन्ध । पहली शैली में गम्भीर विचारों को प्रकट करने की चेष्टा की जाती है। अतः इनमें संस्कृत की कठिन और समास पदावली का प्रयोग किया जाता है। गवेषणात्मक और विवेचनात्मक निवन्धों में यही शैली लाभदायक होती है। दूसरे प्रकार की शैली में छोटे-छोटे वाक्य और सरल पदावली रहती है, तथा एक वात को विस्तार तथा व्याख्या से कहने का यत्न किया जाता है। विचारात्मक निवन्ध के तीन भेद और हैं